मेवाड़ का भूगोल एवं नामकरण
- उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ सहित आस-पास का क्षेत्र मेवाड़ कहलाता है।
- प्राचीन नाम: शिवि, प्राग्वाट, मेद्घाट।
- मेर/मेद जाति के कारण इसका नाम मेद्घाट पड़ा।
गुहिल वंश की उत्पत्ति
- अबुल फजल: गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेरवां आदिल की संतान मानते हैं।
- डी. आर. भंडारकर और डॉ. गोपीनाथ शर्मा: गुहिलों को ब्राह्मण वंश से जोड़ते हैं।
- मुँहणौत नैणसी: प्रारंभिक रूप से ब्राह्मण एवं जानकारी के आधार पर क्षत्रिय।
- डॉ. गोरीशंकर ओझा: गुहिलों को सूर्यवंशी मानते हैं।
- कर्नल जेम्स टॉड: गुहिलों को विदेशी वंशज बताते हैं।
गुहिल वंश की स्थापना
- स्थापक: गुह (गुफा में जन्म के कारण नाम पड़ा)।
- समर्थक कथा: शिलादित्य की रानी पुष्पावती ने विदेशी आक्रमण के समय गुफा में एक पुत्र को जन्म दिया, जो गुह कहलाया।
बप्पा रावल (728-753 ई.)
मुख्य बिंदु
- जन्म: ईडर के राजा नागादित्य की हत्या के बाद बप्पा जंगल में पहुँचे।
- हारीत ऋषि से संबंध: ऋषि की कृपा से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।
- राज्य विजय:
- 734 ई. में मौर्य शासक मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार किया।
- श्यामलदास के अनुसार, चित्तौड़ दुर्ग विजय का समय 734 ई. है।
- उपाधियाँ: 'हिंदू सूर्य', 'राजगुरु', और 'चक्कवै'।
- राजधानी: नागदा।
धार्मिक योगदान
- पाशुपत संप्रदाय के अनुयायी।
- एकलिंगजी मंदिर: कैलाशपुरी (उदयपुर) में निर्माण।
- एकलिंगजी को राजा घोषित किया और स्वयं को दीवान।
- यह परंपरा आज तक चली आ रही है।
सिक्के
- तांबे और स्वर्ण धातु के सिक्के।
- स्वर्ण सिक्के का भार: 119 ग्रेन।
- प्रतीक: कामधेनु, शिवलिंग, त्रिशूल, चमर आदि।
मृत्यु एवं स्मारक
- स्थान: नागदा।
- समाधि स्थल: एकलिंगजी से एक मील दूर 'बप्पा रावल' के नाम से प्रसिद्ध।
- पाकिस्तान के रावलपिंडी का नामकरण: बप्पा रावल के ठिकाने के आधार पर।
बप्पा रावल और कालभोज से संबंधित तथ्य:
बप्पा रावल का नाम और उपाधि
- सी. बी. वैद्य: बप्पा रावल को 'चार्ल्स मार्टेल' की उपाधि दी, जिसने अरब आक्रमण को विफल किया।
- डॉ. रामप्रसाद और श्यामलदास ('वीर विनोद'): बप्पा कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि है।
- नैणसी और कर्नल टॉड: बप्पा रावल का मूल नाम कालभोज था।
- रणकपुर प्रशस्ति: बप्पा रावल और कालभोज को अलग-अलग व्यक्तियों के रूप में दर्शाती है।
अल्लट (आलु-रावल)
- बप्पा रावल के वंशज अल्लट ने हुण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया।
- अल्लट ने आहड़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- अल्लट ने वराह मंदिर का निर्माण करवाया और मेवाड़ में नौकरशाही का गठन किया।
- पूर्व में मेवाड़ की राजधानी नागदा थी।
गुहिल वंश में विभाजन और शाखाएँ
- रणसिंह (कर्णसिंह): गुहिल वंश के राजा।
- दो पुत्र: क्षेमसिंह और राहप।
- क्षेमसिंह: रावल शाखा के संस्थापक।
- राहप: सिसोदिया शाखा के संस्थापक; सीसोदा गाँव की स्थापना।
- रावल शाखा का अंत अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़ विजय (1303) से हुआ।
- सिसोदिया शाखा ने मेवाड़ का शासन संभाला।
जैत्रसिंह (1213-1253 ई.)
- राजधानी स्थानांतरण:
- दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के नागदा आक्रमण के कारण राजधानी चित्तौड़ स्थानांतरित की।
- सैन्य विजय:
- सोनगरा चौहान उदयसिंह को पराजित किया।
- इल्तुतमिश को 1231 ई. में नागौर के पास परास्त किया।
- गौरवपूर्ण शासक:
- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने उन्हें मेवाड़ के महान शासकों में से एक माना।
- डॉ. दशरथ शर्मा ने उनके शासनकाल को मेवाड़ का स्वर्णकाल कहा।
तेजसिंह (1253-1273 ई.)
- उपाधि: 'परमभट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर'।
- साहित्यिक उन्नति:
- उनके समय में 'श्रावक प्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि' की रचना हुई।
- धार्मिक निर्माण:
- रानी जयतल्लदेवी ने चित्तौड़ में श्याम पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
समरसिंह (1273-1302 ई.)
- तुर्कों को गुजरात से खदेड़ा।
- उनके पुत्र:
- रतनसिंह: मेवाड़ के अंतिम रावल।
- कुंभकर्ण: नेपाल में शाही वंश की स्थापना की।
रावल रतनसिंह (1302-1303 ई.) और चित्तौड़ का युद्ध
- युद्ध कारण:
- चित्तौड़ का सामरिक और व्यापारिक महत्व।
- गुजरात और दक्षिण भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए।
- युद्ध विवरण:
- 28 जनवरी, 1303 को अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
- किले में रसद सामग्री समाप्त होने पर गोरा और बादल के नेतृत्व में राजपूतों ने शत्रु पर हमला किया।
- रानी पद्मिनी और 1600 स्त्रियों ने जौहर किया (चित्तौड़ का प्रथम साका)।
- 26 अगस्त, 1303 को रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
- परिणाम:
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद रखा।
- खिज्र खां को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया।
विशेष तथ्य
- मलिक मोहम्मद जायसी ने 'पद्मावत' में युद्ध का कारण रानी पद्मिनी को बताया, जो ऐतिहासिक रूप से विवादित है।
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़ में गंभीरी नदी पर पुल बनवाया।
- डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार, रानी पद्मिनी के विषय में घटनाएँ काल्पनिक हो सकती हैं, क्योंकि यह विवरण 1540 ई. में लिखा गया।
राणा हमीर सिसोदिया और उनकी उपलब्धियाँ
प्रशंसा और उपाधियाँ
- कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (चित्तौड़गढ़): राणा हमीर को 'विषम घाटी पंचानन' (दुर्गम घाटियों का शेर) कहा गया।
- कर्नल जेम्स टॉड: उन्हें अपने समय का प्रबल हिंदू शासक माना।
- रसिकप्रिया की टीका (महाराणा कुम्भा): राणा हमीर को वीर राजा कहा गया।
निर्माण कार्य
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अन्नपूर्णा माता के मंदिर का निर्माण (मोकलजी के शिलालेख में उल्लेख)।
महत्वपूर्ण युद्ध और उपलब्धियाँ
- सिंगोली का युद्ध:
- दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने राणा हमीर के समय मेवाड़ पर आक्रमण किया।
- राणा हमीर ने तुगलक को हराया और चित्तौड़ का स्वतंत्र शासक बनने का मार्ग प्रशस्त किया।
उत्तराधिकारी
- 1364 ई. में राणा हमीर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा क्षेत्रसिंह (महाराणा खेता) मेवाड़ के शासक बने।
राणा क्षेत्रसिंह (1364-1382 ई.)
सैन्य और प्रशासनिक उपलब्धियाँ
- अपने शासनकाल में अजमेर, जहाजपुर, माण्डल और छप्पन को मेवाड़ में सम्मिलित किया।
- मालवा के दिलावर खां गोरी को परास्त कर मालवा-मेवाड़ संघर्ष की शुरुआत की।
मृत्यु
- 1382 ई. में बूंदी (हाड़ौती) के लालसिंह हाड़ा से युद्ध करते हुए राणा क्षेत्रसिंह की मृत्यु हो गई।
- इस युद्ध में लालसिंह हाड़ा भी मारे गए।
- राणा क्षेत्रसिंह की एक दासी (खातिन जाति) से दो पुत्र (चाचा और मेरा) हुए।
- चाचा और मेरा ने बाद में राणा क्षेत्रसिंह के पौत्र महाराणा मोकल की हत्या कर दी।
राणा लाखा या राणा लक्षसिंह (1382–1421 ई.)
प्रशासन और उपलब्धियाँ
- बदनौर प्रदेश को अपने अधीन किया।
- आर्थिक समृद्धि:
- जावर की खदानों से चाँदी और सीसे के उत्पादन ने मेवाड़ की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया।
- संस्कृति और साहित्य:
- राणा लाखा के दरबार में संस्कृत विद्वान झोटिंग भट्ट और बनेश्वर भट्ट थे।
- पिछोला झील:
- पिच्छु बनजारे ने उनके शासनकाल में पिछोला झील का निर्माण करवाया।
पारिवारिक और राजकीय घटनाएँ
- राणा लाखा ने राठौड़ रणमल की बहन हंसाबाई से विवाह किया।
- विवाह के समझौते के अनुसार, हंसाबाई से जन्मे पुत्र मोकल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया, जबकि बड़े पुत्र चूँडा ने राज्य के अधिकार का त्याग किया।
- चूँडा को "मेवाड़ का भीष्म पितामह" कहा जाता है।
राणा मोकल (1421–1433 ई.)
प्रारंभिक शासन
- पिता राणा लाखा की मृत्यु के समय मोकल मात्र 12 वर्ष के थे।
- राज्य का प्रशासन बड़े भाई चूँडा ने संभाला।
उपलब्धियाँ
- युद्ध और सैन्य विजय:
- 1428 ई. में रामपुरा का युद्ध:
- नागौर के शासक फिरोज खां और गुजरात की सेना को हराया।
- 1428 ई. में रामपुरा का युद्ध:
- संरक्षण और निर्माण कार्य:
- समिधेश्वर मंदिर (चित्तौड़ दुर्ग) का जीर्णोद्धार, जिसे अब "मोकल मंदिर" कहा जाता है।
- एकलिंग मंदिर का जीर्णोद्धार।
हत्या और षड्यंत्र
- 1433 ई. में चाचा और मेरा (मोकल के सौतेले भाई) ने मोकल की हत्या कर दी।
- हत्या का कारण: मोकल द्वारा मजाक में किया गया ताना।
राणा कुंभा (1433–1468 ई.)
प्रारंभिक समस्याएँ और समाधान
- गृह विद्रोह:
- चाचा और मेरा को मारकर कुंभा ने विद्रोह का दमन किया।
- रणमल राठौड़ की चुनौती:
- कुंभा ने 1438 ई. में रणमल को उसकी प्रेमिका भारमली के सहयोग से मरवा दिया।
सैन्य उपलब्धियाँ
- सारंगपुर युद्ध (1437 ई.):
- मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम को हराया और बंदी बनाया।
- बदनोर युद्ध (1457 ई.):
- गुजरात और मालवा की संयुक्त सेनाओं को हराया।
- नागौर का युद्ध:
- शम्स खान की सहायता की, फिर उसे हराकर नागौर पर अधिकार कर लिया।
सांस्कृतिक योगदान
- विजय स्तंभ:
- सारंगपुर विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया।
- घोसुंडी की बावड़ी:
- कुंभा की बहू रानी श्रृंगार देवी ने बनवाई।
- विद्वानों और शिल्पियों का संरक्षण:
- उनके दरबार में शिल्पी मना, फना, विसल और विद्वान योगेश्वर व भट्ट विष्णु थे।
प्रमुख संधियाँ
- आवल-बावल संधि (1453 ई.):
- मेवाड़-मारवाड़ के बीच सीमा निर्धारण।
- चंपानेर संधि (1456/57 ई.):
- गुजरात और मालवा के सुल्तानों ने मेवाड़ पर संयुक्त आक्रमण की योजना बनाई।
समृद्ध शासन और साम्राज्य विस्तार
- राणा कुंभा ने मेवाड़ को सामरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, जो उनके शासनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
राणा लाखा (1382–1421 ई.)
प्रशासनिक और आर्थिक योगदान:
- बदनौर प्रदेश को अधीन कर लिया।
- जावर की खदानों से चांदी और सीसा की निकासी बढ़ी, जिससे आर्थिक समृद्धि आई।
- पिच्छु बनजारे ने राणा लाखा के शासनकाल में पिछोला झील का निर्माण करवाया।
चूँडा का त्याग:
- राणा लाखा ने हंसाबाई से विवाह किया और मोकल का जन्म हुआ।
- चूँडा ने त्याग करते हुए गद्दी मोकल को सौंपने का निर्णय लिया।
- चूँडा के त्याग के कारण उन्हें "मेवाड़ का भीष्म पितामह" कहा गया।
राणा मोकल (1421–1433 ई.)
शासनकाल की शुरुआत:
- बाल्यावस्था में मोकल राजा बने; प्रारंभिक शासन का भार उनके भाई चूँडा ने संभाला।
- चूँडा के मांडू चले जाने के बाद, रणमल राठौड़ ने मेवाड़ पर प्रभाव बढ़ाना शुरू किया।
सैन्य और स्थापत्य योगदान:
- 1428 ई. में रामपुरा के युद्ध में फिरोज खां और गुजरात की सेना को पराजित किया।
- समिधेश्वर मंदिर और एकलिंग मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
- दरबार में प्रसिद्ध शिल्पकार मना, फना, और विसल तथा विद्वान योगेश्वर और भट्ट विष्णु थे।
हत्या:
- मोकल की हत्या उनके चाचा और मेरा द्वारा महपा पंवार की साजिश में की गई।
राणा कुंभा (1433–1468 ई.)
प्रारंभिक चुनौतियां:
- बाल्यावस्था में कुंभा राजा बने।
- कुंभा ने चाचा और मेरा की हत्या करवाकर विद्रोहियों का दमन किया।
- रणमल राठौड़ की हत्या 1438 ई. में उनकी प्रेमिका भारमली की सहायता से करवाई।
सैन्य उपलब्धियां:
- 1437 ई. में सारंगपुर के युद्ध में महमूद खिलजी को हराया।
- 1457 ई. में गुजरात और मालवा की संयुक्त सेनाओं को हराया।
- नागौर के युद्ध में शम्स खान को पराजित कर नागौर पर अधिकार किया।
संधियां और संबंध:
- 1453 ई. में 'आवल-बावल संधि' के तहत मेवाड़-मारवाड़ सीमा का निर्धारण हुआ।
- राव जोधा और राणा कुंभा के संबंध बेहतर हुए।
संस्कृति और स्थापत्य:
- विजय स्तंभ का निर्माण सारंगपुर विजय की स्मृति में करवाया।
- रानी श्रृंगार देवी ने घोसुंडी की बावड़ी का निर्माण करवाया।
- दरबार में सोन सुंदर, कामुनी सुंदर जैसे जैन विद्वान थे।
उपाधियां:
- हिंदु सुरताण: हिंदू शासकों का हितैषी।
- महाराजाधिराज: राजाओं का राजा।
- शैलगुरू और हालगुरू: दुर्ग निर्माण और युद्ध-कला में निपुणता के लिए।
- दानगुरू: दानशीलता के लिए।
- अभिनव भरताचार्य: संगीत और कला का संरक्षक।
संगीत और साहित्य में योगदान
संगीत कला:
- महाराणा कुम्भा स्वयं वीणा बजाते थे।
- संगीत ग्रंथ:
- संगीतराज (5 भाग): पाठरत्नकोश, गीतरत्नकोश, वाद्यरत्नकोश, नृत्यरत्नकोश, रसरत्नकोश।
- संगीतमीसा, सूदप्रबंध।
- गुरु: सारंग व्यास।
- 'अभिनव भरताचार्य' की उपाधि।
रचनाएँ:
- चंदीशतक की व्याख्या।
- गीतगोविंद और रसिकप्रिया की टीका।
- एकलिंग महात्म्य का प्रारंभिक भाग।
- राजवर्णन, संगीतक्रमदीपक, हरिवर्तिका।
दरबारी विद्वान और शिल्पी
मंडन:
- प्रमुख वास्तुकार।
- ग्रंथ: राजवल्लभ, प्रसाद मंडन, देवमूर्ति प्रकरण, शकुन मंडन।
नापा:
- ग्रंथ: वास्तु मंजरी।
गोविंद:
- ग्रंथ: कलानिधि, द्वार दीपिका।
कान्हड़ व्यास:
- एकलिंग महात्म्य की रचना।
अत्रि भट्ट और महेश भट्ट:
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति।
सोन सुंदर और कामुनी सुंदर:
- जैन विद्वान।
महाराणा कुम्भा की उपाधियाँ
- महाराजाधिराज: राजाओं के राजा।
- अभिनव भरताचार्य: संगीत में निपुण।
- हिंदु सुरताण: हिंदू शासकों का रक्षक।
- हालगुरू: पर्वतीय दुर्गों के स्वामी।
- शैलगुरू: युद्धकला में निपुण।
- दानगुरू: दानी।
- अश्वपति: कुशल घुड़सवार।
- राजगुरू: राजनीतिक सिद्धांतों का ज्ञाता।
महाराणा कुम्भा के काल में स्थापत्य, कला, और साहित्य का ऐसा समृद्ध स्वरूप देखने को मिलता है, जो उन्हें महान राजा, कुशल प्रशासक, और विद्यानुरागी के रूप में स्थापित करता है।
राणा कुम्भा और ऊदा/उदयसिंह
- राणा कुम्भा की हत्या: 1468 ई. में उनके पुत्र ऊदा ने कुम्भलगढ़ में मामादेव कुंड पर उनकी हत्या कर दी।
- ऊदा का शासन:
- 1468-1473 ई. तक शासन किया।
- पितृहंता होने के कारण राजपूत सरदारों ने ऊदा को अस्वीकार कर दिया।
- ऊदा का पतन:
- रायमल को राणा बनाने के लिए सरदारों ने संघर्ष किया।
- दाड़िमपुर के युद्ध में रायमल ने ऊदा को हराया।
- ऊदा कुंभलगढ़ से भागकर सोजत, बीकानेर और मांडू गया।
- ग्यासुद्दीन की सहायता मांगने पर उसने अपनी पुत्री का विवाह ग्यासुद्दीन से करवाया।
- बिजली गिरने से ऊदा की मृत्यु हो गई।
राणा रायमल (1473-1509 ई.)
- ग्यासुद्दीन के आक्रमण:
- पहला युद्ध: ग्यासुद्दीन की सेना पर विजय।
- दूसरा युद्ध: मांडलगढ़ में जफर खां की सेना पर विजय।
- तीसरा युद्ध: 1503 ई. में नासिरूद्दीन के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण। उत्तराधिकारी युद्ध के कारण मेवाड़ पराजित हुआ।
- चर्चित घटनाएँ:
- सामंत भवानीदास की पुत्री का नासिरूद्दीन द्वारा अपहरण।
- चित्तौड़ी बेगम के रूप में प्रसिद्ध।
रायमल के पुत्र और उत्तराधिकार विवाद
- संतान: 11 रानियाँ, 13 पुत्र, 2 पुत्रियाँ।
- प्रमुख पुत्र: पृथ्वीराज, जयमल, संग्राम सिंह (सांगा), रायसिंह।
- संग्राम सिंह (सांगा) सबसे छोटे थे।
- उत्तराधिकारी विवाद:
- ज्योतिषी और चारणी द्वारा भविष्यवाणी कि संग्राम सिंह मेवाड़ के स्वामी बनेंगे।
- पृथ्वीराज और जयमल ने संग्राम सिंह पर हमला किया, जिसमें उनकी एक आँख फूट गई।
- संग्राम सिंह को राठौड़ बीदा और कर्मचंद पंवार की शरण मिली।
पृथ्वीराज और जयमल की मृत्यु
- जयमल की मृत्यु:
- सोलंकियों से युद्ध में मारा गया।
- एक अन्य मत के अनुसार, राव सुरताण की पुत्री ताराबाई से विवाह प्रस्ताव के कारण जयमल की हत्या हुई।
- पृथ्वीराज की मृत्यु:
- बहन आनंदा बाई के पति राव जगमाल ने जहर देकर पृथ्वीराज की हत्या की।
- पृथ्वीराज को "उडणा" पृथ्वीराज भी कहा जाता है।
- अजमेर दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।
संग्राम सिंह का उत्तराधिकारी बनना
- परिस्थितियाँ:
- पृथ्वीराज और जयमल की मृत्यु के बाद संग्राम सिंह उत्तराधिकारी बने।
- रायसिंह के अवगुणों के कारण सरदारों ने उसे अस्वीकार किया।
- सत्ता हस्तांतरण:
- 1509 ई. में रायमल ने संग्राम सिंह को अजमेर से बुलाकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
रायमल के शासनकाल की उपलब्धियाँ
- कृषि प्रोत्साहन:
- राम, शंकर और समयासंकट नामक तीन तालाबों का निर्माण।
- शिल्प और निर्माण:
- प्रमुख शिल्पकार अर्जुन के निर्देशन में एकलिंग मंदिर का जीर्णोद्धार।
- पत्नी श्रृंगारदेवी द्वारा घोसुंडी की बावड़ी का निर्माण।
- दरबारी विद्वान:
- गोपाल भट्ट और महेश।
महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)
प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक
- संग्रामसिंह का प्रसिद्ध नाम: महाराणा सांगा।
- समकालीन शासक:
- दिल्ली: सुल्तान सिकंदर लोदी।
- गुजरात: महमूद बेगड़ा।
- मालवा: नासिर शाह/नासिरुद्दीन खिलजी।
ठाकुर कर्मचंद का योगदान
- शरणदाता:
- महाराणा सांगा के कठिन समय में ठाकुर कर्मचंद ने शरण दी।
- महाराणा रायमल ने पहले ठाकुर कर्मचंद को जागीर दी थी।
- सम्मान और जागीर:
- गद्दी पर बैठने के बाद महाराणा सांगा ने ठाकुर कर्मचंद को अजमेर, परबतसर, मांडल, फूलिया, बनेड़ा आदि की जागीरें दीं (कुल वार्षिक आय 15 लाख)।
- 'रावत' की उपाधि प्रदान की।
सीमा सुरक्षा और सामरिक मित्रता
- उत्तर-पूर्वी मेवाड़:
- ठाकुर कर्मचंद की जागीर ने क्षेत्र को सुरक्षित बनाया।
- दक्षिण और पश्चिमी मेवाड़:
- सिरोही और वागड़ के शासकों से मित्रता।
- ईडर के सिंहासन पर प्रशंसक रायमल को बिठाया।
- दक्षिण-पूर्वी सीमा:
- मेदनीराय को गागरोण और चंदेरी की जागीरें देकर सीमा की सुरक्षा।
- मारवाड़:
- वहां के शासक को भी सहयोगी बनाया।
रावत सारंगदेव का सम्मान
- उपकार और सहयोग:
- महाराणा सांगा के कुँवरपद के दौरान रावत सारंगदेव ने दो बार प्राण बचाए।
- सारंगदेव के वंशज:
- उनके पुत्र रावत जोगा को मेवल परगने के और गांव दिए।
- आदेश दिया कि सारंगदेव के वंशज 'सारंगदेवोत' कहलाएंगे।
महाराणा सांगा की इन नीतियों और रणनीतियों ने मेवाड़ की सीमाओं को सुरक्षित किया और उनके साम्राज्य को स्थिरता प्रदान की।
महाराणा सांगा (1509-1528 ई.): मुख्य बिंदु
राजगद्दी पर आसीन
- राज्याभिषेक के समय की स्थिति:
- दिल्ली: सुल्तान सिकंदर लोदी।
- गुजरात: महमूद बेगड़ा।
- मालवा: नासिर शाह/नासिरुद्दीन खिलजी।
- ठाकुर कर्मचंद का योगदान:
- महाराणा सांगा के कठिन समय में ठाकुर कर्मचंद ने शरण दी।
- सांगा ने उन्हें बड़ी जागीरें दीं (जैसे अजमेर, परबतसर, मांडल, फुलिया, बनेड़ा), जिनकी कुल वार्षिक आय ₹15 लाख थी।
- ठाकुर कर्मचंद को "रावत" की उपाधि प्रदान की।
सीमाओं की सुरक्षा
- उत्तर-पूर्व मेवाड़: ठाकुर कर्मचंद को सशक्त सामंत के रूप में स्थापित किया।
- दक्षिण और पश्चिम मेवाड़: सिरोही और वागड़ के शासकों से मित्रता की।
- ईडर राज्य: अपने समर्थक रायमल को ईडर के सिंहासन पर बैठाया।
- दक्षिण-पूर्व मेवाड़: मेदनीराय को गागरोण और चंदेरी की जागीरें सौंपी।
रावत सारंगदेव का सम्मान
- महाराणा सांगा के युवावस्था में रावत सारंगदेव ने दो बार उनके प्राण बचाए।
- उनके उपकारों को याद करते हुए सांगा ने सारंगदेव के पुत्र रावत जोगा को बुलवाया।
- मेवल परगने में कुछ और गांव देकर आदेश दिया कि उनके वंशज "सारंगदेवोत" कहलाएंगे।
धार्मिक कार्य
- 1517 ई. में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में शिलालेख खुदवाया।
- कालिका माता मंदिर: जीर्णोद्धार करवाया।
- जैन ग्रंथ ‘जयचंद्र चैत्य परिपाटी’ (1516 ई.): चित्तौड़गढ़ दुर्ग में 32 जैन मंदिरों का उल्लेख।
गुजरात-मेवाड़ संघर्ष
संघर्ष का प्रारंभ:
- महाराणा कुम्भा के समय से चला संघर्ष महाराणा सांगा के समय फिर शुरू हुआ।
- ईडर का प्रश्न संघर्ष का तात्कालिक कारण था।
ईडर का विवाद:
- राव भाण राठौड़ के देहांत के बाद उनके पुत्र सूर्यमल गद्दी पर बैठे।
- सूर्यमल के देहांत के बाद रायमल गद्दी पर बैठे।
- रायमल के काका भीमसिंह ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की मदद से रायमल को हटाकर खुद गद्दी पर कब्जा कर लिया।
- रायमल ने महाराणा सांगा की शरण ली।
सांगा का हस्तक्षेप:
- रायमल को समर्थन देकर अपनी पुत्री की सगाई उनसे करवाई।
- रायमल को ईडर का सिंहासन दिलाने के लिए बड़ी सेना भेजी।
गुजरात के सुल्तान की प्रतिक्रिया:
- निजामुल्मुल्क ने रायमल को हराकर ईडर पर कब्जा किया।
- सांगा ने निजामुल्मुल्क को हराकर रायमल को फिर से गद्दी दिलाई।
- गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर ने कई बार सेनाएं भेजीं, लेकिन असफल रहा।
- 1520 ई. में सांगा ने स्वयं बड़ी सेना के साथ अहमदनगर को घेरा और विजय प्राप्त की।
महत्वपूर्ण विजय और समझौते
- सांगा की सेना ने बड़नगर को लूटकर चित्तौड़ लौटी।
- सांगा की विजय से गुजरात का सुल्तान लज्जित हुआ।
- मलिक अयाज ने पराजय की आशंका से सांगा से संधि कर ली।
राणा सांगा और मालवा का संबंध: मुख्य बिंदु
मालवा की स्थिति और मेदिनीराय का निष्कासन
- सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय:
- मालवा के शासक।
- शासन में कमजोरी और आंतरिक विद्रोह।
- मेदिनीराय का प्रभाव:
- प्रबल राजपूत सरदार, जिनके नियंत्रण में सुल्तान था।
- मुस्लिम अमीरों ने मेदिनीराय के प्रभाव का विरोध किया।
- गुजरात के सुल्तान की सहायता से मेदिनीराय को मांड से निष्कासित कर दिया गया।
गागरोण का युद्ध (1519 ई.)
युद्ध का कारण:
- महाराणा सांगा ने मेदिनीराय की सहायता की।
- मेदिनीराय को चंदेरी और गागरोण की जागीरें प्रदान की।
- महमूद खिलजी ने इसे युद्ध का अवसर समझकर गागरोण पर आक्रमण किया।
युद्ध और परिणाम:
- महाराणा सांगा ने मेदिनीराय की सहायता के लिए गागरोण पहुंचकर महमूद खिलजी को पराजित किया।
- महमूद खिलजी बंदी बना लिया गया।
- सुल्तान का पुत्र आसफ खां युद्ध में मारा गया।
सुल्तान की कैद और सांगा की उदारता
सुल्तान की चित्तौड़ ले जाया गया:
- सुल्तान को तीन माह तक कैद में रखा।
गुलदस्ते की घटना:
- महाराणा सांगा ने सुल्तान को गुलदस्ता भेंट किया।
- सुल्तान ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा:
- "देन का दो तरीका होता है: या तो ऊंचे से देना, या हाथ झुका कर बड़े को देना। मैं आपका कैदी हूं, इसलिए भीख मांगने के लिए हाथ नहीं बढ़ा सकता।"
- इस उत्तर से सांगा प्रसन्न हुआ।
सुल्तान को आधा मालवा राज्य सौंपा:
- सांगा ने उदारता दिखाते हुए सुल्तान को मालवा का आधा राज्य लौटाया।
- सुल्तान ने रत्नजड़ित मुकुट और सोने की कमर पेटी भेंट की।
- छह महीने बाद सुल्तान को सम्मान सहित मुक्त कर दिया, जबकि उसके पुत्र को जमानत के रूप में रखा गया।
- सांगा के उदार व्यवहार की प्रशंसा
- निज़ामुद्दीन अहमद (लेखक 'तबकाते-अकबरी'):
- राणा सांगा के इस उदार और सम्मानजनक व्यवहार की सराहना की।
- सांगा की छवि:
- एक धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और उदार शासक के रूप में स्थापित।
दिल्ली सल्तनत और महाराणा सांगा: मुख्य बिंदु
दिल्ली सल्तनत से संबंध
- मेवाड़ का विस्तार:
- सिकंदर लोदी के कमजोर शासन का फायदा उठाकर सांगा ने मेवाड़ के निकटवर्ती दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रों को अपने राज्य में मिलाना शुरू किया।
- इब्राहीम लोदी का हस्तक्षेप:
- 1517 ई. में इब्राहीम लोदी ने दिल्ली की सत्ता संभालते ही मेवाड़ पर हमला कर दिया।
खातोली का युद्ध (1517 ई.)
- स्थान:
- खातोली (पीपल्दा तहसील, कोटा)।
- युद्ध के कारण:
- महाराणा सांगा और इब्राहीम लोदी की महत्वाकांक्षाओं का टकराव।
- परिणाम:
- महाराणा सांगा ने सुल्तान इब्राहीम लोदी को पराजित किया।
- अमर काव्य वंशावली के अनुसार:
- युद्ध में लोदी के एक शहजादे को बंदी बनाया गया।
- कुछ दंड लेकर रिहा किया गया।
- महत्व:
- इस युद्ध से महाराणा सांगा की ख्याति सिर्फ राजपूताना में नहीं, बल्कि पूरे उत्तरी भारत में फैल गई।
सांगा का प्रभाव और स्वप्न
- दिल्ली पर हिंदू सत्ता का स्वप्न:
- दिल्ली सल्तनत, जो भारत की शक्ति का प्रतीक थी, पर विजय प्राप्त कर सांगा ने दिल्ली पर हिंदू राज्य स्थापित करने का सपना देखा।
- राजपूताना में प्रभाव:
- यह जीत सांगा के नेतृत्व में राजपूतों की शक्ति का प्रतीक बनी और उसने सांगा की धाक को और मजबूत किया।
सारांश: खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा ने न केवल इब्राहीम लोदी को हराया बल्कि अपनी रणनीतिक कुशलता और वीरता से उत्तरी भारत में राजपूत शक्ति को स्थापित करने की नींव रखी।
राणा सांगा और लोदी वंश: मुख्य बिंदु
बारी का युद्ध (1518 ई.)
- कारण:
- इब्राहिम लोदी ने अपनी पहली पराजय का बदला लेने के लिए मियाँ हुसैन फरमूली और मियाँ माखन के नेतृत्व में सेना भेजी।
- फारसी तवारीखों के अनुसार:
- मियाँ हुसैन ने राणा से मिलकर मियाँ माखन को हराया।
- बाबर के अनुसार, धौलपुर की लड़ाई में राजपूत विजयी हुए।
- परिणाम:
- बारी (धौलपुर) के पास राणा सांगा ने लोदी सेना को हराया।
- लोदी सुल्तान की कमजोरी उजागर हुई।
- उत्तर भारत का नेतृत्व सांगा के हाथ में आया।
- विदेशी और देशी शक्तियों ने सांगा की शक्ति को स्वीकार किया।
राणा सांगा और मुगल सम्राट बाबर
बाबर का प्रस्ताव:
- बाबर ने काबुल से राणा को संदेश भेजा।
- उसने इब्राहिम लोदी को हराने में मदद मांगी।
- कहा कि विजय के बाद दिल्ली बाबर के पास और आगरा से आगे के क्षेत्र राणा के अधिकार में रहेंगे।
- सांगा की प्रतिक्रिया:
- सिलहदी तंवर के माध्यम से प्रस्ताव स्वीकार किया।
- सामंतों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
- सांगा ने उनकी सलाह मानकर बाबर को सहयोग नहीं दिया।
बयाना का युद्ध (16 फरवरी, 1527)
पृष्ठभूमि:
- बाबर ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया।
- बयाना पर कब्जा करने के लिए दोस्त इश्कआका और फिर मेहंदी ख्वाजा को भेजा।
- मेहंदी ख्वाजा ने बयाना जीत लिया।
सांगा का संगठन:
- सांगा ने कई राजपूत शासकों को संगठित किया:
- मारवाड़: राव गांगा के पुत्र मालदेव।
- चंदेरी: मेदिनीराय।
- मेड़ता: रायमल राठौड़।
- सिरोही: अखैराज दूदा।
- डूंगरपुर: रावल उदयसिंह।
- सलूम्बर: रावत रतनसिंह।
- सादड़ी: झाला अज्जा।
- गोगुन्दा: झाला सज्जा।
- हसन खां मेवाती भी राणा से आ मिला।
- सांगा ने कई राजपूत शासकों को संगठित किया:
युद्ध:
- बाबर ने दुर्ग में घिरे मुगल सैनिकों की मदद के लिए सुल्तान मिर्जा के नेतृत्व में सेना भेजी।
- राणा सांगा ने राजपूत सेना के साथ बाबर की सेना को बुरी तरह हराया।
- 16 फरवरी, 1527 को बयाना में भारी संघर्ष हुआ।
- मुगलों की हार हुई, और राणा ने उनके भारी असले पर कब्जा कर लिया।
परिणाम:
- बयाना की विजय राणा सांगा की अंतिम बड़ी जीत थी।
- यह युद्ध राणा की ताकत और रणनीति का प्रमाण था।
महत्व:
- बयाना की जीत ने उत्तर भारत में राणा सांगा की शक्ति और प्रतिष्ठा को चरम पर पहुँचा दिया।
- यह सांगा की अंतिम महान विजय मानी जाती है।
खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527)
युद्ध की घटनाएँ
राणा सांगा की सेना:
- राणा की सेना में 7 उच्च श्रेणी के राजा, 9 राव, और 104 सरदार शामिल थे।
- प्रमुख सेनानायक:
- महमूद लोदी (अफगान सुल्तान)
- हसन खां मेवाती (मेव शासक)
- मालदेव (राव गंगा का पुत्र, मारवाड़)
- कु. कल्याणमल (राव जैतसी का पुत्र, बीकानेर)
- पृथ्वीराज (आम्बेर का कच्छवाहा शासक)
- रायमल राठौड़ (मेड़ता)
- मेदिनीराय (चंदेरी)
- अखैराज (सिरोही)
- रावत रतनसिंह (सलूम्बर)
- झाला अज्जा (गोगुन्दा)
बाबर की रणनीति:
- आगरा में पाँच दिन रुकने के बाद सीकरी की ओर बढ़ा।
- सैनिकों में भय और आतंक का माहौल था।
- ज्योतिषी मुहम्मद शरीफ ने "मंगल का तारा पश्चिम में है" कहकर सैनिकों को हतोत्साहित किया।
बाबर की तैयारी:
- 25 फरवरी, 1527 को शराब न पीने की प्रतिज्ञा की।
- सोने-चाँदी की सुराहियाँ और प्याले तुड़वा कर गरीबों में बाँटे।
- तमगा (धार्मिक कर) समाप्त करने की घोषणा की।
- युद्ध को "जिहाद" घोषित किया।
- सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए भाषण दिया।
राजपूतों की रणनीति:
- सांगा ने बयाना की विजय के बाद भुसावर होते हुए 13 मार्च, 1527 को खानवा पहुँचा।
- रायसेन के सरदार सलहदी तंवर के माध्यम से सुलह की कोशिश की, लेकिन सरदारों ने इसे खारिज कर दिया।
युद्ध का आरंभ:
- 17 मार्च, 1527 को सुबह 9:30 बजे युद्ध शुरू हुआ।
- राणा सांगा ने जोरदार हमला किया।
सांगा की चोट:
- राणा सांगा युद्ध में घायल हो गए।
- सिरोही के अखैराज दूदा ने उन्हें युद्ध क्षेत्र से बाहर लाकर बसवा (दोसा) में ठहराया।
- झाला अज्जा को राजचिह्न धारण कर रणक्षेत्र में हाथी पर बिठाया गया।
युद्ध का परिणाम:
- बाबर की सेना ने अंततः विजय प्राप्त की।
- बाबर ने युद्ध के बाद हताहत शत्रुओं की खोपड़ियों से मीनार बनवाई।
- बाबर ने "गाजित्व" (विजेता) की उपाधि प्राप्त की।
सांगा का स्मारक:
- राणा सांगा के स्मारक का निर्माण बसवा (दोसा) में किया गया।
महत्व:
- खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा के बीच निर्णायक संघर्ष था।
- यह भारत में मुगलों की सत्ता स्थापित करने और राजपूत शक्ति के पतन का प्रतीक बना।