निवास स्थान
- मुख्य क्षेत्र: भौमट क्षेत्र (उदयपुर)।
- सबसे अधिक भील जनसंख्या बांसवाड़ा जिले में निवास करती है।
नाम का अर्थ
- "भील" शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द "बील" से हुई है, जिसका अर्थ है "कमान"।
इतिहास में उल्लेख
- कर्नल टॉड: भीलों को "वनपुत्र" कहा।
- टॉलमी: भीलों को "फिलाइट" (तीरंदाज) कहा।
- राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है।
घर और बस्तियां
- घरों को: कू या टापरा।
- झोपड़ियों के समूह: फला।
- बड़े गांव: पाल।
- गांव का मुखिया: गमेती/पालती।
वस्त्र
- ठेपाडा/ढेपाडा: भील पुरुषों की तंग धोती।
- खोयतू: लंगोटी।
- फालू: साधारण धोती।
- पोत्या: सफेद साफा।
- पिरिया: दुल्हन की पीले रंग की साड़ी।
- सिंदूरी: लाल रंग की साड़ी।
- कछावू: लाल और काले रंग का घाघरा।
लोकगीत और नृत्य
- लोकगीत: सुवंटिया (स्त्रियों द्वारा), हमसीढ़ो (युगल गीत)।
- नृत्य: गवरी, राई, गैर, ढिचकी, हाथीमना, घुमरा।
प्रमुख मेले
- बेणेश्वर मेला (डूंगरपुर): माघ पूर्णिमा पर।
- घोटिया अंबा मेला (बांसवाड़ा): चैत्र अमावस्या पर, जिसे "भीलों का कुंभ" कहते हैं।
कुल देवता और देवी
- कुल देवता: टोटम देव।
- कुल देवी: आमजा माता/केलड़ा माता (केलवाड़ा, उदयपुर)।
विवाह प्रथाएं
- हरण विवाह: लड़की को भगाकर।
- परीक्षा विवाह: पुरुष के साहस का प्रदर्शन।
- क्रय विवाह (दापा करना): वधू का मूल्य चुकाकर।
- सेवा विवाह: वर द्वारा सास-ससुर की सेवा।
- हठ विवाह: लड़का-लड़की का भागकर विवाह।
विशेष प्रथाएं
- हाथी वेडो: बांस, पीपल, या सागवान के समक्ष फेरे लिए जाते हैं।
- भंगोरिया उत्सव: जीवनसाथी का चयन।
- मृत्यु भोज: इसे काटा कहा जाता है।
- खेती की पद्धतियां
- झुनिंग कृषि: पहाड़ों पर वनों को काटकर या जलाकर भूमि साफ करना।
- वालर/दजिया: मैदानी क्षेत्रों में भूमि साफ कर खेती।
- अन्य विशेषताएं
- भील पुरुष और महिलाएं फाइरे-फाइरे रणघोष करते हैं।
- वैवाहिक अवसर पर लोक देवी का भित्ति चित्र, जिसे भराड़ी कहते हैं।
- केसरिया नाथ जी/आदिनाथ जी के चढ़ी हुई केसर का पानी पीने के बाद कभी झूठ नहीं बोलते।