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राजस्थान में किसान आंदोलन



 1. बिजौलिया किसान आंदोलन




बिजौलिया का पुराना नाम: विजयावल्ली

  • स्थापना और इतिहास:
    • राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया जागीर के रूप में दी।
    • अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में भाग लिया था।
    • बिजौलिया मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।

स्थिति:

  • वर्तमान में यह राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

किसान आंदोलन के प्रमुख कारण:

  1. 84 प्रकार के कर:
    किसानों पर विभिन्न प्रकार के कर थोपे गए थे।
  2. अधिक भू-राजस्व:
    किसानों से उनकी क्षमता से अधिक कर वसूला जाता था।
  3. लता कुंता:
    भूमि से संबंधित अत्यधिक कर।
  4. चंवरी कर:
    लड़कियों की शादी पर कर लगाया गया।
    • 1903 में कृष्णसिंह ने लड़कियों की शादी पर चंवरी कर लगाया।
    • प्रत्येक शादी पर 5 रुपये वसूले जाते थे।
  5. तलवार बंधाई कर:
    • यह कर पहले सामंत राजा को देते थे।
    • 1906 में पृथ्वीसिंह ने यह कर आम जनता पर लगा दिया।

आंदोलन का महत्व:

  • किसानों ने इन करों के खिलाफ संगठित होकर आंदोलन शुरू किया।
  • यह आंदोलन राजस्थान में किसानों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा कदम था।

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राजस्थान में किसान तथा आदिवासी आंदोलन


राजस्थान में किसान आंदोलन

1. बिजौलिया किसान आंदोलन

  • बिजौलिया का पुराना नाम: विजयावल्ली
  • इतिहास:
    • राणा सांगा ने अशोक परमार को अपरमाल (उतमादि) की जागीर दी थी।
    • इस जागीर का मुख्य केंद्र बिजौलिया था।
    • अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में भाग लिया था।
    • बिजौलिया मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
  • वर्तमान स्थिति: बिजौलिया राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

किसान आंदोलन के प्रमुख कारण:

  1. 84 प्रकार के कर:
    • किसानों पर अनावश्यक और अत्यधिक कर थोपे गए।
  2. अधिक भू-राजस्व:
    • कृषि भूमि पर भारी राजस्व वसूला गया।
  3. लता-कुंता कर:
    • फसलों और भूमि के उपयोग पर कर लगाया गया।
  4. चंवरी कर:
    • लड़कियों की शादी पर कर।
    • 1903 में कृष्णसिंह ने यह कर लगाया, जिसमें प्रत्येक शादी पर 5 रुपये वसूले जाते थे।
  5. तलवार बंधाई कर:
    • यह कर पहले नए सामंत राजा को देते थे।
    • 1906 में पृथ्वीसिंह ने इसे आम जनता पर थोप दिया।

आंदोलन का महत्व:

  • बिजौलिया आंदोलन राजस्थान के किसान आंदोलनों में सबसे प्रमुख था।
  • इसने किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने और संगठित संघर्ष करने का मार्ग प्रशस्त किया।

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बिजौलिया किसान आंदोलन: तीन चरणों में विवरण

1. प्रथम चरण (1897-1916)

  • नेतृत्व: साधु सीताराम दास
  • प्रमुख जाति: धाकड़ जाति के किसान
  • शुरुआत:
    • आंदोलन गिरधरपुरा गांव से प्रारंभ हुआ।
    • किसानों ने साधु सीताराम दास के नेतृत्व में शोषण के खिलाफ आवाज उठाई।
  • प्रमुख घटनाएँ:
    • साधु सीताराम दास ने नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को शिकायत के लिए मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह के पास उदयपुर भेजा।
    • महाराणा ने जांच के लिए हामिद अधिकारी को भेजा।
  • सफलता:
    • प्रथम चरण में किसानों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली।
    • आंदोलन स्थानीय स्तर पर जारी रहा।
  • स्थानीय नेता:
    • प्रेमचंद भील, ब्रह्मदेव, फतेह करण चारण
  • 1915 घटना:
    • पृथ्वी सिंह ने साधु सीताराम दास और उनके सहयोगी फतेह करण चारण व ब्रह्मदेव को बिजौलिया से निष्कासित कर दिया।

2. द्वितीय चरण (1916-1923)

  • नेतृत्व:
    • विजयसिंह पथिक और माणिक्यलाल वर्मा
  • प्रमुख घटनाएँ:
    • 1917:
      • विजयसिंह पथिक ने बैरीसाल गांव में हरियाली अमावस्या के दिन "ऊपरमाल पंच बोर्ड" की स्थापना की।
      • मन्ना पटेल को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया।
    • ऊपरमाल सेवा समिति का गठन किया गया।
    • विजयसिंह पथिक ने 'अपरमाल का डंका' नामक पत्रिका प्रकाशित की।
  • समाचार पत्र:
    • प्रताप और ऊपरमाल डंका आंदोलन को प्रचलित करने वाले प्रमुख समाचार पत्र थे।
  • 1919:
    • मेवाड़ रियासत ने बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया।
    • आयोग ने लगान दरों को कम करने और करों को हटाने की सिफारिश की, पर महाराणा ने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • 1922 समझौता:
    • ए.जी.जी. रॉबर्ट हॉलेण्ड और मेवाड़ के P.A. विलकिन्स ने किसानों के साथ समझौता करवाया।
    • इस समझौते में 35 कर माफ किए गए।
    • लेकिन बिजौलिया के सामंत ने इस समझौते को स्वीकार नहीं किया।
  • 1923 घटना:
    • विजयसिंह पथिक को गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष की सजा सुनाई गई।

विशेष तथ्य

  • यह आंदोलन किसानों के शोषण के खिलाफ राजस्थान के सबसे बड़े और प्रभावशाली आंदोलनों में से एक था।
  • इसका प्रभाव धीरे-धीरे राजस्थान के अन्य क्षेत्रों तक पहुंचा।

आंदोलन के तृतीय चरण (1923-1941) और आदिवासी आंदोलनों पर भी जानकारी चाहिए तो बताएं!



बिजौलिया किसान आंदोलन: तृतीय चरण (1923-1941)

प्रमुख घटनाएँ

  • 1941 में समझौता:
    • मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजयराघवाचार्य ने अपने राजस्व मंत्री डा. मोहन सिंह मेहता को बिजौलिया भेजा।
    • डा. मोहन सिंह मेहता ने ठिकानेदार और किसानों के बीच समझौता करवाया।
    • समझौते के प्रमुख बिंदु:
      • लगान की दरें कम कर दी गईं।
      • अनेक लाग-बाग समाप्त कर दी गईं।
      • बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया।

महिलाओं की भूमिका

  • इस आंदोलन में दो प्रमुख महिलाओं ने भाग लिया:
    • रानी भीलनी
    • उदी मालन

सांस्कृतिक योगदान

  • आंदोलन के दौरान माणिक्यलाल वर्मा ने 'पंछीड़ा गीत' लिखा, जो इस आंदोलन के संघर्ष को दर्शाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन

  • लोकमान्य तिलक:
    • तिलक ने अपने 'मराठा' समाचार पत्र में बिजौलिया किसान आंदोलन के पक्ष में लेख लिखा।
    • उन्होंने मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह को आंदोलन की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए पत्र भी लिखा।
  • गणेश शंकर विद्यार्थी:
    • कानपुर से 'प्रताप' समाचार पत्र प्रकाशित करते थे।
    • इस समाचार पत्र में बिजौलिया आंदोलन की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं।
    • विजयसिंह पथिक ने गणेश शंकर विद्यार्थी को चांदी की राखी भेजकर सम्मानित किया।

साहित्यिक योगदान

  • प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद का उपन्यास 'रंगभूमि' बिजौलिया किसान आंदोलन पर आधारित है।

समाप्ति

  • यह आंदोलन 1941 में सफलता पूर्वक समाप्त हुआ।
  • आंदोलन के परिणामस्वरूप किसानों को राहत मिली, करों में कमी हुई, और शोषणकारी व्यवस्थाओं का अंत हुआ।

बिजौलिया आंदोलन राजस्थान के किसान आंदोलनों में सबसे प्रभावशाली और संगठित प्रयास था। इसका प्रभाव राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों पर भी पड़ा।






बिजौलिया किसान आंदोलन का महत्व

  1. राजस्थान का पहला संगठित किसान आंदोलन:
    • यह आंदोलन किसानों के सामूहिक संघर्ष का पहला उदाहरण था।
  2. विश्व का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन:
    • यह आंदोलन लगभग 44 वर्षों (1897-1941) तक अहिंसक रूप में चला।
  3. राजनीतिक चेतना का विकास:
    • इस आंदोलन ने किसानों में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता और राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया।
  4. अन्य आंदोलनों को प्रेरणा:
    • बिजौलिया आंदोलन ने राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों जैसे बेंगू किसान आंदोलन को प्रेरित किया।

बेंगू किसान आंदोलन (1921-1924)

स्थान और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • स्थान:
    • बेंगू मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी ठिकाना था।
    • वर्तमान में यह चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है।
  • प्रमुख जाति:
    • धाकड़ किसानों द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
  • प्रारंभ:
    • 1921 में मेनाल (भीलवाड़ा) से आंदोलन शुरू हुआ।

नेतृत्व

  • आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया।

प्रमुख घटनाएँ

  1. समझौता और विवाद:
    • बेंगू के सामंत अनूपसिंह ने किसानों से समझौता कर लिया।
    • लेकिन मेवाड़ रियासत ने इस समझौते को अस्वीकार कर दिया और इसे "बोल्शेविक समझौता" कहा।
  2. जाँच और फायरिंग:
    • मेवाड़ महाराणा ने मामले की जांच के लिए ट्रेन्च को भेजा।
    • 13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा में किसानों की सभा पर ट्रेन्च ने फायरिंग की।
    • रूपाजी और किरपाजी, दो धाकड़ किसान, इस फायरिंग में शहीद हो गए।
  3. 1924 में समझौता:
    • किसानों के संघर्ष के बाद, लगान की दरें घटा दी गईं
    • बेगार प्रथा समाप्त कर दी गई।

परिणाम

  • यह आंदोलन 1924 में सफलतापूर्वक समाप्त हुआ।
  • बेंगू आंदोलन ने राजस्थान में किसान आंदोलनों को नई दिशा दी और शासन को किसानों की मांगें मानने पर मजबूर किया।

महत्व

  • बेंगू आंदोलन ने राजस्थान के किसानों में संगठित संघर्ष और राजनीतिक चेतना को और अधिक बढ़ावा दिया।
  • यह आंदोलन भी अहिंसक रूप से सफल हुआ और किसानों की शक्ति का प्रतीक बन गया।






राजस्थान के किसान आंदोलन: विस्तृत विवरण


1. बूंदी/बरड़ किसान आंदोलन (1923-1943)

  • प्रमुख जाति: गुर्जर किसान
  • नेतृत्व: पं. नयनूराम शर्मा (राजस्थान सेवा संघ के सदस्य)
  • महत्वपूर्ण घटना - डाबी हत्याकांड (2 अप्रैल 1923):
    • स्थान: डाबी
    • सभा पर इकराम हुसैन द्वारा फायरिंग की गई।
    • शहीद:
      • नानकजी भील (सभा में झंडा गीत गा रहे थे)।
      • देवीलाल गुर्जर।
    • इस घटना ने आंदोलन को व्यापक रूप से प्रभावित किया।
  • सांस्कृतिक योगदान:
    • माणिक्यलाल वर्मा ने नानकजी भील की स्मृति में 'अर्जी' गीत लिखा।
  • महिलाओं की भागीदारी:
    • आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
  • मुख्य नेता:
    • पं. नयनूराम शर्मा, नारायणसिंह, भंवरलाल सुनार।
  • परिणाम:
    • आंदोलन 1943 में असफलता के साथ समाप्त हो गया।

2. अलवर किसान आंदोलन (1924)

  • कारण:
    • अलवर राज्य में जंगली सुअरों को मारने पर प्रतिबंध
  • परिणाम:
    • आंदोलन के बाद किसानों को जंगली सुअरों को मारने की अनुमति मिल गई।

3. नीमूचाणा किसान आंदोलन (14 मई 1925)

  • स्थान: कोटपूतली-बहरोड़ (अलवर)
  • कारण:
    • 1924 में अलवर के महाराणा जयसिंह द्वारा लगान की दरों में वृद्धि।
  • घटनाक्रम:
    • 14 मई 1925:
      • किसान नीमूचाणा गांव में एकत्र हुए।
      • पुलिस अधिकारी छाजूसिंह ने सभा पर फायरिंग करवाई।
    • शहीद: 156 लोग।
    • इसे "राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड" कहा गया।
  • प्रतिक्रिया:
    • गांधीजी ने अपने 'यंग इंडिया' में इसे दोहरी डायरशाही बताया।
    • 'रियासत' समाचार पत्र ने इसे जलियांवाला हत्याकांड से जोड़ा।
    • 'तरुण राजस्थान' समाचार पत्र ने घटना को सचित्र प्रकाशित किया।
  • प्रमुख जाति: राजपूत किसान।

4. शेखावाटी किसान आंदोलन

  • शुरुआत:
    • 1922 में सीकर के सामंत कल्याण सिंह ने करों में वृद्धि की।
  • नेतृत्व:
    • रामनारायण चौधरी (राजस्थान सेवा संघ के मंत्री)।
  • अंतरराष्ट्रीय कवरेज:
    • 'डेली हेराल्ड' (लंदन) में आंदोलन की खबरें प्रकाशित हुईं।
    • 1925: ब्रिटेन के पैथिक लॉरेंस ने हाउस ऑफ कॉमन्स में आंदोलन का जिक्र किया।
  • महासभा का गठन:
    • 1931: राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा का गठन हुआ।
    • 1933:
      • महासभा का पहला अधिवेशन पलथाना (सीकर) में हुआ।
  • महत्त्वपूर्ण आयोजन:
    • 20 जनवरी 1934 (बसंत पंचमी):
      • ठाकुर देशराज ने जाट प्रजापति महायज्ञ का आयोजन करवाया।
      • मुख्य पुरोहित: खेमराज शर्मा।
      • मुख्य यज्ञपति: कुंवर हुकुमसिंह।

राजस्थान किसान आंदोलनों का महत्त्व

  1. किसानों में राजनीतिक जागरूकता का प्रसार हुआ।
  2. इन आंदोलनों ने राजस्थान में सामंती और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ विरोध का मार्ग प्रशस्त किया।
  3. महिलाओं और विभिन्न जातियों की सक्रिय भागीदारी ने समाज में समानता और एकता का संदेश दिया।
  4. यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।






शेखावाटी किसान आंदोलन के अन्य प्रमुख घटनाक्रम

1. कटराथल सम्मेलन, सीकर (25 अप्रैल 1934)

  • स्थान: कटराथल (सीकर)
  • प्रमुख घटना:
    • सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतियां का बास गांव की जाट महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का विरोध।
    • नेतृत्व:
      • श्रीमती किशोरी देवी (हरलाल सिंह खर्रा की पत्नी)।
    • सम्मेलन:
      • यह एक विशाल महिला सम्मेलन था।
      • लगभग 10,000 जाट महिलाओं ने भाग लिया।
    • महिलाओं को प्रेरित करने वाले नेता:
      • ठाकुर देशराज की पत्नी श्रीमती उत्तमादेवी के ओजस्वी भाषण ने महिलाओं में साहस और निर्भीकता का संचार किया।

2. जयसिंहपुरा हत्याकांड, झुंझुनूं (21 जून 1934)

  • स्थान: डूंडलोद, झुंझुनूं।
  • प्रमुख घटना:
    • ठाकुर ईश्वरसिंह ने किसानों पर गोलीबारी करवाई, जो खेती कर रहे थे।
    • परिणाम:
      • ठाकुर ईश्वरसिंह को डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई गई।
    • महत्त्व:
      • यह राजस्थान का प्रथम हत्याकांड था जिसमें किसानों के हत्यारों को सजा मिली।

3. कूदन हत्याकांड (25 अप्रैल 1935)

  • स्थान: कूदन (सीकर)।
  • प्रमुख घटना:
    • धापी देवी द्वारा किसानों को टैक्स न देने के लिए प्रेरित किया गया।
    • फायरिंग:
      • कैप्टन वेब द्वारा गोलीबारी करवाई गई।
    • शहीद:
      • चेतराम, टीकराम, तुलहाराम, आशाराम।
  • अंतरराष्ट्रीय चर्चा:
    • इस हत्याकांड की चर्चा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में हुई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  1. इन घटनाओं ने किसानों में साहस और संघर्ष का संदेश दिया।
  2. महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को नई दिशा दी।
  3. यह आंदोलन केवल स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चर्चा का विषय बना।
  4. किसान आंदोलन ने राजस्थान के सामंती और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ राजनीतिक और सामाजिक चेतना का विस्तार किया।


राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलनों के तथ्य एवं घटनाएं


1. भरतपुर किसान आंदोलन (1931 ई.)

  • भूमि व्यवस्था:
    • 95% कृषि भूमि राज्य सरकार के नियंत्रण में थी।
    • 1931 में नई भूमि बंदोबस्त नीति लागू की गई, जिससे भू-राजस्व में वृद्धि हुई।
  • प्रमुख घटना:
    • 23 नवंबर 1931 को भोजी लंबरदार ने किसानों का विरोध आयोजित किया।
    • उन्हें गिरफ्तार कर आंदोलन को दबाने की कोशिश की गई।

2. मेव आंदोलन (1932-33 ई.)

  • नेतृत्व:
    • चौधरी यासीन खान और मोहम्मद हादी।
  • संस्था:
    • मोहम्मद हादी ने अंजुमन खादिम-उल-इस्लाम की स्थापना की।
  • प्रमुख घटना:
    • मेवों ने खरीफ फसल का लगान देना बंद कर दिया।
    • राज्य सरकार ने मेवात क्षेत्र को संतुष्ट करने हेतु जाँच समिति बनाई।
  • परिणाम:
    • विद्रोह 1934 में समाप्त हो गया।

3. बीकानेर किसान आंदोलन

गंगनहर क्षेत्र का आंदोलन
  • नहर निर्माण:
    • 1925 में महाराजा गंगा सिंह द्वारा गंगनहर परियोजना की शुरुआत।
    • 1929 में जमींदार एसोसिएशन का गठन।
  • प्रमुख मांगें:
    • 10 मई 1929 को श्रीगंगानगर में किसानों की समस्याओं को लेकर मांग पत्र तैयार किया।
  • परिणाम:
    • 1947 तक जमींदार एसोसिएशन किसानों के हितों के लिए कार्यरत रही।
जागीर क्षेत्रों में आंदोलन
  • लाग-बाग विरोध:
    • जागीरदार 37 प्रकार की लाग-बागें व बेगार प्रथा लागू करते थे।
    • 1937 में उदरासर के किसानों ने इसका विरोध किया।
  • नेतृत्व:
    • जीवन चौधरी ने किसानों की समस्याएं महाराजा के सामने रखीं।
बीकानेर षड्यंत्र (1932)
  • घटना:
    • महाराजा गंगा सिंह के लंदन जाने पर बीकानेर दिग्दर्शन पर्चों में दमनकारी नीतियों का खुलासा।
  • परिणाम:
    • जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया।
    • स्वामी गोपालदास, चंदनमल बहादुर आदि को षड्यंत्र केस में गिरफ्तार किया गया।
दूधवाखारा किसान आंदोलन (चूरू, 1944)
  • घटना:
    • जागीरदारों ने किसानों को उनकी भूमि से बेदखल किया।
    • नेतृत्व: हनुमानसिंह (बीकानेर प्रजा परिषद)।
कांगड कांड (1946)
  • स्थान: कांगड (वर्तमान रतनगढ़, चूरू)।
  • घटना:
    • ठाकुर गोप सिंह द्वारा किसानों पर अत्याचार।
    • बीकानेर प्रजा परिषद ने इसकी निंदा की।
  • महत्त्व:
    • यह बीकानेर किसान आंदोलन की अंतिम घटना थी।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1. राजनीतिक चेतना का विकास: इन आंदोलनों ने किसानों में जागरूकता और संगठित संघर्ष की भावना पैदा की।
  2. महिला भागीदारी: कई आंदोलनों में महिलाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
  3. अंतरराष्ट्रीय चर्चा:
    • शेखावाटी आंदोलन और अन्य घटनाओं की चर्चा हाउस ऑफ कॉमन्स में हुई।
    • इन आंदोलनों को ब्रिटिश साम्राज्य के लिए भी चुनौती माना गया।
  4. राजनीतिक दबाव:
    • जयपुर और बीकानेर के शासकों को आंदोलनों के कारण राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा।
  5. दमनकारी नीतियों का विरोध: आंदोलनों ने सामंती और औपनिवेशिक शासन के शोषण का खुलासा किया !




मारवाड़ के प्रमुख किसान आंदोलन


1. मरुधर मित्र हितकारिणी सभा (1915)

  • स्थापना:
    • मारवाड़ का प्रथम राजनीतिक संगठन।
    • किसानों और समाज के हितों की रक्षा के लिए कार्यरत।

2. मारवाड़ सेवा संघ (1921)

  • स्थापना:
    • दूसरा राजनीतिक संगठन।
    • अधिक विस्तृत कार्यक्षेत्र के साथ किसानों के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित।

3. मारवाड़ का तौल आंदोलन (1920-21)

  • नेतृत्व:
    • चान्दमल सुराना और उनके साथी।
  • कारण:
    • जोधपुर सरकार ने 100 तौले के सेर को 80 तौले के सेर में बदलने का निर्णय लिया।
  • परिणाम:
    • आंदोलन के दबाव में सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा।

4. मारवाड़ हितकारिणी सभा का आंदोलन (1923-24)

  • प्रमुख घटनाएं:
    • 29 अक्टूबर, 1923 को जोधपुर राज्य ने पशुधन के निर्यात का आदेश जारी किया।
    • 15 जुलाई, 1924 को जोधपुर शहर में विरोध सभा का आयोजन।
  • परिणाम:
    • 15 अगस्त, 1924 को राज्य ने जनता की मांग स्वीकार कर ली।
  • प्रचार सामग्री:
    • दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित की गईं:
      • पोपा बाई की पोल
      • मारवाड़ की अवस्था

5. चन्द्रावल कांड (1945)

  • स्थान:
    • सोजत परगने का चन्द्रावल गाँव।
  • घटना:
    • मारवाड़ लोक परिषद के कार्यकर्ताओं ने शांतिपूर्ण सम्मेलन आयोजित किया।
    • उन पर लाठी और भालों से हमला किया गया, जिससे कई लोग घायल हुए।

6. डाबड़ा कांड (13 मार्च, 1947)

  • स्थान:
    • डीड़वाना परगने का डाबड़ा गाँव।
  • संघर्ष:
    • मारवाड़ लोक परिषद और मारवाड़ किसान सभा का संयुक्त सम्मेलन।
    • सम्मेलन पर हमला किया गया, जिसमें कई लोग शहीद हुए और सैंकड़ों घायल हुए।
  • प्रतिक्रिया:
    • इस घटना की राष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई।
    • समाचार पत्रों में आलोचना:
      • बम्बई का 'वन्देमातरम्'
      • जयपुर का 'लोकवाणी'
      • जोधपुर का 'प्रजा सेवक'
      • दिल्ली का 'हिन्दुस्तान टाइम्स'

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1. राजनीतिक संगठनों की स्थापना:
    • मरुधर मित्र हितकारिणी सभा और मारवाड़ सेवा संघ ने किसानों के मुद्दों को संगठित किया।
  2. सामाजिक चेतना का विकास:
    • आंदोलनों ने किसानों में जागरूकता और सामूहिक संघर्ष की भावना को प्रेरित किया।
  3. शांतिपूर्ण प्रतिरोध और दमन:
    • कई आंदोलनों पर दमनकारी कार्रवाइयाँ हुईं, फिर भी किसानों ने अपना संघर्ष जारी रखा।
  4. राष्ट्रीय स्तर पर पहचान:
    • डाबड़ा और चन्द्रावल कांड जैसे घटनाओं ने मारवाड़ किसान आंदोलन को राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिया।
  5. प्रकाशन माध्यमों का उपयोग:
    • पुस्तिकाओं और समाचार पत्रों के माध्यम से आंदोलन की बातों को व्यापक जनसमूह तक पहुँचाया गया।



राजस्थान के प्रमुख जनजातीय आंदोलन


भील आंदोलन

1. मेवाड़ में भील आंदोलन (1881-83)

  • प्रमुख घटनाएँ:
    • 1872-1875 के बीच बांसवाड़ा में भील विद्रोह की कई घटनाएँ।
    • 1881-1882 में उदयपुर के भीलों ने अंग्रेजों और उदयपुर राज्य के खिलाफ विद्रोह किया।
  • मुख्य घटना:
    • 27 मार्च 1881 को बारापाल में ब्रिटिश और राज्य सेना ने सैकड़ों भील झोपड़ियों को जला दिया।
  • परिणाम:
    • विद्रोह को दबाने के असफल प्रयासों के बाद कर्नल वाल्टर के नेतृत्व में समझौता हुआ।
    • भीलों को वन अधिकार और करों में रियायतें दी गईं।

2. भगत आंदोलन

  • स्थापना और उद्देश्य:
    • गोविन्द गुरु और सुरजी भगत के नेतृत्व में।
    • 1883 में सम्प सभा का गठन।
    • भीलों का नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान।
  • महत्वपूर्ण घटना:
    • मानगढ़ हत्याकांड (17 नवंबर 1913):
      • बांसवाड़ा में भील सम्मेलन पर पुलिस ने गोलीबारी की।
      • 1500 से अधिक भील शहीद हुए।
      • इसे "राजस्थान का जलियांवाला बाग" कहा जाता है।
    • परिणाम:
      • गोविन्द गुरु को गिरफ्तार किया गया और 10 साल बाद रिहा किया गया।
      • उन्होंने अपना शेष जीवन गुजरात के कान्बिया गाँव में शांतिपूर्ण तरीके से बिताया।

3. एकी आंदोलन

  • नेतृत्व:
    • गोविन्द गुरु के जेल जाने के बाद मोतीलाल तेजावत
    • भीलों के मसीहा और बावसी के नाम से प्रसिद्ध।
  • प्रमुख घटनाएँ:
    • 1921 में मातृकुंडिया (चित्तौड़गढ़) से आंदोलन प्रारंभ।
    • डूंगरपुर, इडर, बांसवाड़ा, और गुजरात के विजयनगर तक आंदोलन फैला।
    • 7 मार्च 1922 को नीमड़ा (विजयनगर) में सम्मेलन पर सैनिकों ने गोलीबारी की।
      • 1200 भील मारे गए।
      • महात्मा गांधी ने इसे जलियांवाला बाग से भी भयानक बताया।
  • परिणाम:
    • मोतीलाल तेजावत ने 1929 में महात्मा गांधी की सलाह पर आत्मसमर्पण किया।
    • 1936 में उन्हें रिहा किया गया।
    • उन्होंने गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों में भाग लिया।

मीणा आंदोलन

1. आपराधिक जनजाति अधिनियम (1924)

  • प्रभाव:
    • मीणा जनजाति को आपराधिक जनजाति घोषित किया गया।
    • जयपुर रियासत ने 1930 में जरायम पेशा कानून लागू किया।
    • मीणाओं को थानों में नियमित उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य।

2. मीणा जाति सुधार समिति (1924)

  • स्थापना:
    • छोटूराम झरवाल, महादेवराम, पबड़ी, और जवाहरराम मीणा द्वारा।
  • उद्देश्य:
    • जागरूकता फैलाना और मीणा समाज में सुधार।

3. अन्य संगठनों और घटनाएँ

  • 1933: मीणा क्षेत्रीय महासभा का गठन।
  • 1944:
    • संत मगन सागर ने नीम का थाना में मीणा सम्मेलन का आयोजन।
    • 'मीन पुराण' नामक पुस्तक लिखी।
  • 1946:
    • 28 अक्टूबर को बागवास सम्मेलन (जयपुर) में मीणा चौकीदारों ने सामूहिक इस्तीफा दिया।
    • इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया।
  • 1952:
    • जरायम पेशा कानून समाप्त किया गया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1. भील आंदोलन:
    • वन अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिए संघर्ष।
    • मानगढ़ और नीमड़ा हत्याकांड ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
  2. मीणा आंदोलन:
    • आपराधिक जनजाति अधिनियम और जरायम पेशा कानून का विरोध।
    • मीणा समाज में सुधार और जागरूकता अभियान।
  3. सामाजिक सुधार के प्रयास:
    • भगत आंदोलन और मीणा जाति सुधार समिति के माध्यम से कुरीतियों का उन्मूलन।
  4. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव:
    • मोतीलाल तेजावत और गोविन्द गुरु जैसे नेताओं ने गांधीवादी विचारधारा अपनाई।
  5. आंदोलनों का प्रभाव:
    • भील और मीणा समुदायों में आत्मसम्मान और अधिकारों की चेतना।