1. बिजौलिया किसान आंदोलन
बिजौलिया का पुराना नाम: विजयावल्ली
- स्थापना और इतिहास:
- राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया जागीर के रूप में दी।
- अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में भाग लिया था।
- बिजौलिया मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
स्थिति:
- वर्तमान में यह राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
किसान आंदोलन के प्रमुख कारण:
- 84 प्रकार के कर:
किसानों पर विभिन्न प्रकार के कर थोपे गए थे। - अधिक भू-राजस्व:
किसानों से उनकी क्षमता से अधिक कर वसूला जाता था। - लता कुंता:
भूमि से संबंधित अत्यधिक कर। - चंवरी कर:
लड़कियों की शादी पर कर लगाया गया।- 1903 में कृष्णसिंह ने लड़कियों की शादी पर चंवरी कर लगाया।
- प्रत्येक शादी पर 5 रुपये वसूले जाते थे।
- तलवार बंधाई कर:
- यह कर पहले सामंत राजा को देते थे।
- 1906 में पृथ्वीसिंह ने यह कर आम जनता पर लगा दिया।
आंदोलन का महत्व:
- किसानों ने इन करों के खिलाफ संगठित होकर आंदोलन शुरू किया।
- यह आंदोलन राजस्थान में किसानों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा कदम था।
अगर आप और विस्तार से जानकारी चाहते हैं या अन्य आंदोलनों के बारे में जानना चाहते हैं, तो बता सकते हैं!
राजस्थान में किसान तथा आदिवासी आंदोलन
राजस्थान में किसान आंदोलन
1. बिजौलिया किसान आंदोलन
- बिजौलिया का पुराना नाम: विजयावल्ली
- इतिहास:
- राणा सांगा ने अशोक परमार को अपरमाल (उतमादि) की जागीर दी थी।
- इस जागीर का मुख्य केंद्र बिजौलिया था।
- अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में भाग लिया था।
- बिजौलिया मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
- वर्तमान स्थिति: बिजौलिया राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
किसान आंदोलन के प्रमुख कारण:
- 84 प्रकार के कर:
- किसानों पर अनावश्यक और अत्यधिक कर थोपे गए।
- अधिक भू-राजस्व:
- कृषि भूमि पर भारी राजस्व वसूला गया।
- लता-कुंता कर:
- फसलों और भूमि के उपयोग पर कर लगाया गया।
- चंवरी कर:
- लड़कियों की शादी पर कर।
- 1903 में कृष्णसिंह ने यह कर लगाया, जिसमें प्रत्येक शादी पर 5 रुपये वसूले जाते थे।
- तलवार बंधाई कर:
- यह कर पहले नए सामंत राजा को देते थे।
- 1906 में पृथ्वीसिंह ने इसे आम जनता पर थोप दिया।
आंदोलन का महत्व:
- बिजौलिया आंदोलन राजस्थान के किसान आंदोलनों में सबसे प्रमुख था।
- इसने किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने और संगठित संघर्ष करने का मार्ग प्रशस्त किया।
अगर आप आदिवासी आंदोलनों और अन्य किसान आंदोलनों के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो बताएं!
बिजौलिया किसान आंदोलन: तीन चरणों में विवरण
1. प्रथम चरण (1897-1916)
- नेतृत्व: साधु सीताराम दास
- प्रमुख जाति: धाकड़ जाति के किसान
- शुरुआत:
- आंदोलन गिरधरपुरा गांव से प्रारंभ हुआ।
- किसानों ने साधु सीताराम दास के नेतृत्व में शोषण के खिलाफ आवाज उठाई।
- प्रमुख घटनाएँ:
- साधु सीताराम दास ने नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को शिकायत के लिए मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह के पास उदयपुर भेजा।
- महाराणा ने जांच के लिए हामिद अधिकारी को भेजा।
- सफलता:
- प्रथम चरण में किसानों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली।
- आंदोलन स्थानीय स्तर पर जारी रहा।
- स्थानीय नेता:
- प्रेमचंद भील, ब्रह्मदेव, फतेह करण चारण
- 1915 घटना:
- पृथ्वी सिंह ने साधु सीताराम दास और उनके सहयोगी फतेह करण चारण व ब्रह्मदेव को बिजौलिया से निष्कासित कर दिया।
2. द्वितीय चरण (1916-1923)
- नेतृत्व:
- विजयसिंह पथिक और माणिक्यलाल वर्मा
- प्रमुख घटनाएँ:
- 1917:
- विजयसिंह पथिक ने बैरीसाल गांव में हरियाली अमावस्या के दिन "ऊपरमाल पंच बोर्ड" की स्थापना की।
- मन्ना पटेल को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया।
- ऊपरमाल सेवा समिति का गठन किया गया।
- विजयसिंह पथिक ने 'अपरमाल का डंका' नामक पत्रिका प्रकाशित की।
- 1917:
- समाचार पत्र:
- प्रताप और ऊपरमाल डंका आंदोलन को प्रचलित करने वाले प्रमुख समाचार पत्र थे।
- 1919:
- मेवाड़ रियासत ने बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया।
- आयोग ने लगान दरों को कम करने और करों को हटाने की सिफारिश की, पर महाराणा ने इसे अस्वीकार कर दिया।
- 1922 समझौता:
- ए.जी.जी. रॉबर्ट हॉलेण्ड और मेवाड़ के P.A. विलकिन्स ने किसानों के साथ समझौता करवाया।
- इस समझौते में 35 कर माफ किए गए।
- लेकिन बिजौलिया के सामंत ने इस समझौते को स्वीकार नहीं किया।
- 1923 घटना:
- विजयसिंह पथिक को गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष की सजा सुनाई गई।
विशेष तथ्य
- यह आंदोलन किसानों के शोषण के खिलाफ राजस्थान के सबसे बड़े और प्रभावशाली आंदोलनों में से एक था।
- इसका प्रभाव धीरे-धीरे राजस्थान के अन्य क्षेत्रों तक पहुंचा।
आंदोलन के तृतीय चरण (1923-1941) और आदिवासी आंदोलनों पर भी जानकारी चाहिए तो बताएं!
बिजौलिया किसान आंदोलन: तृतीय चरण (1923-1941)
प्रमुख घटनाएँ
- 1941 में समझौता:
- मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजयराघवाचार्य ने अपने राजस्व मंत्री डा. मोहन सिंह मेहता को बिजौलिया भेजा।
- डा. मोहन सिंह मेहता ने ठिकानेदार और किसानों के बीच समझौता करवाया।
- समझौते के प्रमुख बिंदु:
- लगान की दरें कम कर दी गईं।
- अनेक लाग-बाग समाप्त कर दी गईं।
- बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
महिलाओं की भूमिका
- इस आंदोलन में दो प्रमुख महिलाओं ने भाग लिया:
- रानी भीलनी
- उदी मालन
सांस्कृतिक योगदान
- आंदोलन के दौरान माणिक्यलाल वर्मा ने 'पंछीड़ा गीत' लिखा, जो इस आंदोलन के संघर्ष को दर्शाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन
- लोकमान्य तिलक:
- तिलक ने अपने 'मराठा' समाचार पत्र में बिजौलिया किसान आंदोलन के पक्ष में लेख लिखा।
- उन्होंने मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह को आंदोलन की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए पत्र भी लिखा।
- गणेश शंकर विद्यार्थी:
- कानपुर से 'प्रताप' समाचार पत्र प्रकाशित करते थे।
- इस समाचार पत्र में बिजौलिया आंदोलन की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं।
- विजयसिंह पथिक ने गणेश शंकर विद्यार्थी को चांदी की राखी भेजकर सम्मानित किया।
साहित्यिक योगदान
- प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद का उपन्यास 'रंगभूमि' बिजौलिया किसान आंदोलन पर आधारित है।
समाप्ति
- यह आंदोलन 1941 में सफलता पूर्वक समाप्त हुआ।
- आंदोलन के परिणामस्वरूप किसानों को राहत मिली, करों में कमी हुई, और शोषणकारी व्यवस्थाओं का अंत हुआ।
बिजौलिया आंदोलन राजस्थान के किसान आंदोलनों में सबसे प्रभावशाली और संगठित प्रयास था। इसका प्रभाव राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों पर भी पड़ा।
बिजौलिया किसान आंदोलन का महत्व
- राजस्थान का पहला संगठित किसान आंदोलन:
- यह आंदोलन किसानों के सामूहिक संघर्ष का पहला उदाहरण था।
- विश्व का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन:
- यह आंदोलन लगभग 44 वर्षों (1897-1941) तक अहिंसक रूप में चला।
- राजनीतिक चेतना का विकास:
- इस आंदोलन ने किसानों में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता और राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया।
- अन्य आंदोलनों को प्रेरणा:
- बिजौलिया आंदोलन ने राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों जैसे बेंगू किसान आंदोलन को प्रेरित किया।
बेंगू किसान आंदोलन (1921-1924)
स्थान और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- स्थान:
- बेंगू मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी ठिकाना था।
- वर्तमान में यह चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है।
- प्रमुख जाति:
- धाकड़ किसानों द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
- प्रारंभ:
- 1921 में मेनाल (भीलवाड़ा) से आंदोलन शुरू हुआ।
नेतृत्व
- आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया।
प्रमुख घटनाएँ
- समझौता और विवाद:
- बेंगू के सामंत अनूपसिंह ने किसानों से समझौता कर लिया।
- लेकिन मेवाड़ रियासत ने इस समझौते को अस्वीकार कर दिया और इसे "बोल्शेविक समझौता" कहा।
- जाँच और फायरिंग:
- मेवाड़ महाराणा ने मामले की जांच के लिए ट्रेन्च को भेजा।
- 13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा में किसानों की सभा पर ट्रेन्च ने फायरिंग की।
- रूपाजी और किरपाजी, दो धाकड़ किसान, इस फायरिंग में शहीद हो गए।
- 1924 में समझौता:
- किसानों के संघर्ष के बाद, लगान की दरें घटा दी गईं।
- बेगार प्रथा समाप्त कर दी गई।
परिणाम
- यह आंदोलन 1924 में सफलतापूर्वक समाप्त हुआ।
- बेंगू आंदोलन ने राजस्थान में किसान आंदोलनों को नई दिशा दी और शासन को किसानों की मांगें मानने पर मजबूर किया।
महत्व
- बेंगू आंदोलन ने राजस्थान के किसानों में संगठित संघर्ष और राजनीतिक चेतना को और अधिक बढ़ावा दिया।
- यह आंदोलन भी अहिंसक रूप से सफल हुआ और किसानों की शक्ति का प्रतीक बन गया।
राजस्थान के किसान आंदोलन: विस्तृत विवरण
1. बूंदी/बरड़ किसान आंदोलन (1923-1943)
- प्रमुख जाति: गुर्जर किसान
- नेतृत्व: पं. नयनूराम शर्मा (राजस्थान सेवा संघ के सदस्य)
- महत्वपूर्ण घटना - डाबी हत्याकांड (2 अप्रैल 1923):
- स्थान: डाबी
- सभा पर इकराम हुसैन द्वारा फायरिंग की गई।
- शहीद:
- नानकजी भील (सभा में झंडा गीत गा रहे थे)।
- देवीलाल गुर्जर।
- इस घटना ने आंदोलन को व्यापक रूप से प्रभावित किया।
- सांस्कृतिक योगदान:
- माणिक्यलाल वर्मा ने नानकजी भील की स्मृति में 'अर्जी' गीत लिखा।
- महिलाओं की भागीदारी:
- आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
- मुख्य नेता:
- पं. नयनूराम शर्मा, नारायणसिंह, भंवरलाल सुनार।
- परिणाम:
- आंदोलन 1943 में असफलता के साथ समाप्त हो गया।
2. अलवर किसान आंदोलन (1924)
- कारण:
- अलवर राज्य में जंगली सुअरों को मारने पर प्रतिबंध।
- परिणाम:
- आंदोलन के बाद किसानों को जंगली सुअरों को मारने की अनुमति मिल गई।
3. नीमूचाणा किसान आंदोलन (14 मई 1925)
- स्थान: कोटपूतली-बहरोड़ (अलवर)
- कारण:
- 1924 में अलवर के महाराणा जयसिंह द्वारा लगान की दरों में वृद्धि।
- घटनाक्रम:
- 14 मई 1925:
- किसान नीमूचाणा गांव में एकत्र हुए।
- पुलिस अधिकारी छाजूसिंह ने सभा पर फायरिंग करवाई।
- शहीद: 156 लोग।
- इसे "राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड" कहा गया।
- 14 मई 1925:
- प्रतिक्रिया:
- गांधीजी ने अपने 'यंग इंडिया' में इसे दोहरी डायरशाही बताया।
- 'रियासत' समाचार पत्र ने इसे जलियांवाला हत्याकांड से जोड़ा।
- 'तरुण राजस्थान' समाचार पत्र ने घटना को सचित्र प्रकाशित किया।
- प्रमुख जाति: राजपूत किसान।
4. शेखावाटी किसान आंदोलन
- शुरुआत:
- 1922 में सीकर के सामंत कल्याण सिंह ने करों में वृद्धि की।
- नेतृत्व:
- रामनारायण चौधरी (राजस्थान सेवा संघ के मंत्री)।
- अंतरराष्ट्रीय कवरेज:
- 'डेली हेराल्ड' (लंदन) में आंदोलन की खबरें प्रकाशित हुईं।
- 1925: ब्रिटेन के पैथिक लॉरेंस ने हाउस ऑफ कॉमन्स में आंदोलन का जिक्र किया।
- महासभा का गठन:
- 1931: राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा का गठन हुआ।
- 1933:
- महासभा का पहला अधिवेशन पलथाना (सीकर) में हुआ।
- महत्त्वपूर्ण आयोजन:
- 20 जनवरी 1934 (बसंत पंचमी):
- ठाकुर देशराज ने जाट प्रजापति महायज्ञ का आयोजन करवाया।
- मुख्य पुरोहित: खेमराज शर्मा।
- मुख्य यज्ञपति: कुंवर हुकुमसिंह।
- 20 जनवरी 1934 (बसंत पंचमी):
राजस्थान किसान आंदोलनों का महत्त्व
- किसानों में राजनीतिक जागरूकता का प्रसार हुआ।
- इन आंदोलनों ने राजस्थान में सामंती और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ विरोध का मार्ग प्रशस्त किया।
- महिलाओं और विभिन्न जातियों की सक्रिय भागीदारी ने समाज में समानता और एकता का संदेश दिया।
- यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।