राजस्थान के देशी राज्यों की स्थिति
- 1818 ई. में अंग्रेजी कम्पनी के साथ संधियाँ कर, राज्यों ने बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित की।
- कम्पनी के हस्तक्षेप से राजाओं की पारंपरिक अधिकार प्रणाली पर आघात।
- आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से देशी नरेशों की प्रभुसत्ता घटकर सामंती स्तर पर आ गई।
- कम्पनी की आर्थिक नीतियों से सभी वर्गों—राजा, सामंत, किसान, व्यापारी, शिल्पी, मजदूर—को क्षति पहुँची।
एनफील्ड राइफल विवाद
- गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने ब्राउनबैस राइफलों के स्थान पर एनफील्ड राइफलें शुरू कीं।
- इनके कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया।
- इससे हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों में असंतोष फैल गया।
राजपूताना रेजीडेंसी
स्थापना और मुख्यालय
- राजपूताना रेजीडेंसी की स्थापना 1832 ई. में हुई।
- मुख्यालय अजमेर में स्थित था।
- प्रथम A.G.G. (एजेंट टू गवर्नर जनरल): मि. लॉकेट।
ग्रीष्मकालीन कार्यालय का स्थानांतरण
- 1845 ई. में विलियम बैंटिक द्वारा आबू में ग्रीष्मकालीन कार्यालय स्थापित किया गया।
1857 की क्रांति के समय की स्थिति
- उस समय ए.जी.जी.: जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स।
- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री: पार्मस्टन।
- ब्रिटेन की महारानी: विक्टोरिया एलिजाबेथ।
- गवर्नर जनरल: लॉर्ड कैनिंग।
- कम्पनी का मुख्य सेनापति: कैम्पबेल।
1857 की क्रांति के मुख्य तथ्य
- क्रांति का प्रतीक चिन्ह: कमल का फूल और रोटी (चपाती)।
- क्रांति की प्रारंभिक तारीख: 31 मई 1857 तय हुई थी।
- क्रांति का आरंभ:
- तिथि: 10 मई 1857।
- स्थान: मेरठ (उत्तर प्रदेश)।
- मुख्य नेता: बहादुर शाह जफर-द्वितीय।
1857: राजस्थान की रियासतें, पॉलिटिकल एजेंट और शासक
रियासत | पॉलिटिकल एजेंट | शासक |
---|---|---|
जयपुर | ईडन | रामसिंह-द्वितीय |
कोटा | बर्टन | रामसिंह-द्वितीय |
जोधपुर | GH. मेकमोसन | तख्त सिंह |
उदयपुर | शावर्स | स्वरूप सिंह |
सिरोही | जे.डी. हॉल | शिवसिंह |
जूनानू | मॉरीसन | जसवंत सिंह |
धौलपुर | निक्सन | भगवन्त सिंह |
बाँसवाड़ा | कर्नल रैंक | लक्ष्मण सिंह |
1857 की क्रांति: राजस्थान की सैनिक छावनियाँ और नसीराबाद विद्रोह
राजस्थान में 6 सैनिक छावनियाँ
- नसीराबाद (अजमेर): 15वीं बंगाल पैदल सेना (सबसे शक्तिशाली छावनी)।
- नीमच (मध्यप्रदेश): प्रथम बंगाल कैवेलरी।
- देवली (टोंक): कोटा कन्टिनजेन्ट।
- ब्यावर: मेर रेजीमेंट।
- एरिनपुरा (पाली): जोधपुर लीजन।
- खेरवाड़ा (उदयपुर): मेवाड़ भील कोर।
- इन 6 छावनियों में कुल 5,000 सैनिक थे।
- खेरवाड़ा और ब्यावर की सैनिक छावनियाँ विद्रोह में भागीदार नहीं बनीं।
क्रांति के आरंभ की सूचना
- मेरठ विद्रोह (10 मई, 1857) की सूचना राजस्थान के ए.जी.जी. जार्ज पैट्रिक लॉरेन्स को 19 मई, 1857 को मिली।
- ए.जी.जी. ने सभी राज्यों को अपने क्षेत्रों में शांति बनाए रखने और विद्रोहियों को प्रवेश न देने का निर्देश दिया।
अजमेर की सुरक्षा की समस्या
- अजमेर में भारी मात्रा में गोला-बारूद और खजाना था।
- ए.जी.जी. ने इसे सुरक्षित रखने के लिए 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को नसीराबाद भेजा।
- ब्यावर से मेर रेजीमेंट को बुलाया गया।
- डीसा (गुजरात) से यूरोपीय सेना भेजने की मांग की गई।
नसीराबाद में विद्रोह के कारण
अविश्वास और असंतोष:
- 15वीं बंगाल इन्फेंट्री को अजमेर से नसीराबाद भेजा गया।
- सैनिकों में अंग्रेजों के प्रति अविश्वास और असंतोष पैदा हुआ।
सैन्य गतिविधियों से असुरक्षा:
- अंग्रेज सैन्य अधिकारियों ने रक्षार्थ फर्स्ट बम्बई लांसर्स से गश्त लगवाई और तोपें तैयार रखीं।
- भारतीय सैनिकों ने इसे कुचलने की योजना समझा।
चर्बी वाले कारतूस का विवाद:
- एनफील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का उपयोग।
- हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों को धर्म भ्रष्ट करने की आशंका।
नसीराबाद का विद्रोह: 28 मई, 1857
- 28 मई, 1857 को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने नसीराबाद छावनी में विद्रोह किया।
- छावनी और अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों को लूट लिया।
- मेजर स्पोटिस वुड और न्यूबरी की हत्या कर दी गई।
- अंग्रेज अधिकारियों ने नसीराबाद छोड़ दिया।
विद्रोहियों का दिल्ली की ओर प्रस्थान
- विद्रोही सैनिक नसीराबाद लूटने के बाद दिल्ली की ओर कूच कर गए।
- 18 जून, 1857 को दिल्ली पहुँचकर उन्होंने अंग्रेज पलटन को पराजित किया।
3 जून 1857 का नीमच विद्रोह (मुख्य बिंदु)
मोहम्मद अली बेग का इनकार:
- मोहम्मद अली बेग नामक सैनिक ने कर्नल एबॉट के सामने अंग्रेजों के प्रति वफादारी की शपथ लेने से इनकार किया।
- उनका तर्क: अंग्रेजों ने अवध पर अधिकार कर अपनी शपथ भंग की, इसलिए भारतीयों से शपथ पालन की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
विद्रोह की शुरुआत:
- हीरासिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने 3 जून 1857 को नीमच छावनी में विद्रोह किया।
- शस्त्रागार में आग लगाई और अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर हमला किया।
- एक अंग्रेज सार्जेंट की पत्नी और बच्चों की हत्या की गई।
आंदोलन का विस्तार:
- नीमच के सैनिक चित्तौड़, हम्मीरगढ़, और बनेड़ा में अंग्रेज बंगलों को लूटते हुए शाहपुरा पहुँचे।
- शाहपुरा के सामंत उम्मेदसिंह ने इन सैनिकों को रसद आपूर्ति की।
- सैनिक निम्बाहेड़ा पहुँचे, जहाँ जनता ने इनका स्वागत किया।
देवली छावनी (5 जून 1857):
- सैनिकों ने देवली छावनी को घेर लिया।
- छावनी के भारतीय सैनिकों ने विद्रोहियों का साथ दिया।
- छावनी को लूटने के बाद सैनिक टोंक पहुँचे।
टोंक में स्वागत:
- टोंक की जनता ने नवाब के आदेशों की परवाह न करते हुए विद्रोहियों का स्वागत किया।
- वहाँ से ये सैनिक आगरा होते हुए दिल्ली पहुँच गए।
नीमच पर पुनः अधिकार:
- पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन शावर्स ने कोटा, बूँदी, और मेवाड़ की सेनाओं की सहायता से नीमच पर पुनः अधिकार कर लिया।
अंग्रेजों का पलायन और शरण:
- नीमच से भागे 40 अंग्रेजों ने डूंगला (चित्तौड़) गाँव में रुघाराम के पास शरण ली।
- मेवाड़ P.A. शॉबर्स ने इन्हें उदयपुर ले जाकर महाराणा स्वरूप सिंह के संरक्षण में रखा।
- महाराणा ने उन्हें जगमंदिर महल में शरण दी !
एरिनपुरा विद्रोह - 21 अगस्त 1857 (पाली)
प्रारंभ और जोधपुर लीजियन का गठन
- 1835 ई.: अंग्रेजों ने जोधपुर सेना को अकुशल बताकर जोधपुर लीजियन का गठन किया।
- इसका केंद्र एरिनपुरा रखा गया।
एरिनपुरा विद्रोह (21 अगस्त 1857)
विद्रोह की शुरुआत:
- जोधपुर लीजियन के सैनिकों ने आबू में अंग्रेज सैनिकों पर हमला किया।
- इसके बाद एरिनपुरा लौटकर छावनी को लूटा।
- सैनिकों ने "चलो दिल्ली, मारो फिरंगी" का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
आउवा के ठाकुर कुशालसिंह से भेंट:
- विद्रोही सैनिकों की मुलाकात खैरवा नामक स्थान पर आउवा के ठाकुर कुशालसिंह से हुई।
- कुशालसिंह ने विद्रोहियों का समर्थन किया।
कुशालसिंह के सहयोगी:
- आसोप का शिवनाथ
- गूलर का बिशनसिंह
- आलनियावास का अजीतसिंह
मुख्य युद्ध
1. बिथोड़ा का युद्ध:
- नेतृत्व:
- जोधपुर शासक तख्तसिंह ने आउवा को दबाने के लिए किलेदार अनार सिंह और कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में सेना भेजी।
- अंग्रेजों की ओर से कैप्टन हीथकोट भी शामिल थे।
- परिणाम:
- जोधपुर के सेनापति अनार सिंह युद्ध में मारा गया।
- कैप्टन हीथकोट और कुशलराज सिंघवी बच निकले।
- कुशालसिंह चंपावत की विजय हुई।
2. चेलावास का युद्ध (गौरों और कालों का युद्ध):
- 18 सितंबर 1857:
- ए.जी.जी. जॉर्ज लॉरेंस ने सेना लेकर आउवा पर हमला किया।
- विद्रोहियों ने अंग्रेजों को परास्त किया।
- महत्वपूर्ण घटना:
- जोधपुर का राजनीतिक एजेंट मोक मेसन विद्रोहियों के हाथों मारा गया।
- उसका सिर आउवा किले के द्वार पर लटका दिया गया।
- अक्टूबर 1857:
- जोधपुर लीजियन के क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली की ओर रवाना हुए।
3. आउवा का युद्ध (20 जनवरी 1858):
- नेतृत्व:
- अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व ब्रिगेडियर होम्स ने किया।
- ठाकुर कुशालसिंह ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया।
- परिणाम:
- जब विजय की उम्मीद न रही, कुशालसिंह ने सलूम्बर (केसरी सिंह) में शरण ली।
- ठाकुर पृथ्वीसिंह (कुशालसिंह का भाई) ने विद्रोहियों का नेतृत्व संभाला।
- अंततः अंग्रेजों ने किले पर अधिकार कर लिया।
- किलेदार को रिश्वत देकर अंग्रेजों ने अपनी ओर मिला लिया।
विद्रोह के बाद घटनाक्रम
अमानवीय अत्याचार:
- अंग्रेजों ने आउवा में क्रूरता की।
- आउवा की महाकाली (सुगाली माता) की मूर्ति अजमेर ले गए।
कुशालसिंह का आत्मसमर्पण:
- अगस्त 1860: कुशालसिंह ने आत्मसमर्पण किया।
- मेजर टेलर आयोग द्वारा विद्रोह की जांच की गई।
- सबूतों के अभाव में कुशालसिंह को रिहा कर दिया गया।
कोटा का विद्रोह (1857)
विद्रोह की शुरुआत:
- 14 अक्टूबर, 1857 को मेजर बर्टन ने कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय को अंग्रेज विरोधी अधिकारियों को दंडित करने का सुझाव दिया।
- महाराव ने अधिकारियों पर नियंत्रण न होने का हवाला देते हुए मना कर दिया।
- 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा की सेना और जनता ने रेजीडेंसी को घेर लिया।
मुख्य घटनाएं:
- मेजर बर्टन, उसके पुत्रों और एक डॉक्टर की हत्या कर दी गई।
- मेजर बर्टन का सिर कोटा शहर में घुमाया गया।
- महाराव रामसिंह का महल घेर लिया गया।
नेतृत्व:
- विद्रोह का नेतृत्व रिसालदार मेहराबखाँ और लाला जयदयाल ने किया।
- दोनों ने प्रशासन अपने हाथ में लिया और महाराव से परवाने पर हस्ताक्षर करवाए, जिसमें मेजर बर्टन की हत्या को महाराव के आदेश से किया गया बताया गया।
दमन और परिणाम:
- जनवरी 1858 में करौली के राजा मदन पाल ने महाराव रामसिंह को मुक्त कराया।
- 22 मार्च, 1858 को जनरल रॉबर्ट्स ने कोटा शहर को विद्रोहियों से मुक्त करवाया।
- लाला जयदयाल और मेहराबखाँ को मृत्युदंड दिया गया।
- महाराव रामसिंह को दंडित किया गया, और उनकी तोपों की सलामी घटाकर 15 से 11 कर दी गई।
टोंक का विद्रोह (1857)
नवाब और जनता का रुख:
- टोंक के नवाब वजीरुद्दौला अंग्रेज समर्थक था, लेकिन टोंक की जनता और सेना क्रांतिकारियों के पक्ष में थी।
- सेना का बड़ा भाग विद्रोहियों में शामिल हो गया और उन्होंने नवाब के किले को घेर लिया।
मुख्य घटनाएं:
- सैनिकों ने नवाब से वेतन वसूल किया और नीमच की सेना के साथ दिल्ली चले गए।
- नवाब के मामा मीर आलम खाँ ने विद्रोहियों का साथ दिया।
तात्या टोपे का आगमन:
- 1858 के प्रारंभ में तात्या टोपे टोंक पहुँचे।
- जनता और जागीरदार नासिर मुहम्मद खाँ ने तात्या का साथ दिया।
- नवाब ने खुद को किले में बंद कर लिया।
महिलाओं की भागीदारी:
- टोंक के विद्रोह में महिलाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
ताराचंद पटेल का योगदान:
- ताराचंद पटेल ने निम्बाहेड़ा में कर्नल जेक्सन की सेना का सामना किया, जो नीमच के विद्रोहियों का पीछा कर रहा था।
1857 का विद्रोह - धौलपुर, जूनानू, अलवर, और बीकानेर
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