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गरासिया जनजाति - मुख्य जानकारी

निवास:

  • सिरोही जिले की आबुरोड़ और पिण्डवाड़ा तहसीलों में।

घर और गांव:

  • घर: "घेर" कहलाते हैं।
  • गांव: "फालिया" कहलाते हैं।
  • गांव का मुखिया: "सहलोत" कहलाता है।

संस्कृति और परंपराएं:

  1. सोहरी: अनाज संग्रहित करने की कोठियां।
  2. कांधिया: मृत्युभोज की प्रथा।
  3. हरीभावरी: सामूहिक कृषि की परंपरा।
  4. हेलरू: गरासिया जनजाति के विकास हेतु सहकारी संस्था।
  5. हुरे: मृत व्यक्ति की स्मृति में मिट्टी का स्मारक।
  6. अस्थि विसर्जन: नक्की झील (माउंट आबू) में।
  7. आदर्श पक्षी: मोर।

मेलों और त्योहारों:

  1. गौर का मेला/अन्जारी का मेला: सिरोही में वैसाख पूर्णिमा पर।
  2. मनखांरो मेलो: चैपानी क्षेत्र, गुजरात।

विवाह परंपराएं:

  1. मोर बांधिया विवाह: हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार।
  2. पहरावणा विवाह: बिना फेरे लिए जाने वाला विवाह।
  3. तन्ना विवाह: लड़की को भगाकर किया जाने वाला विवाह।

नृत्य:

  1. वालर
  2. लूर
  3. कूद
  4. जवारा
  5. मांदल
  6. मोरिया


सहरिया जनजाति - मुख्य जानकारी

पहचान:

  • राज्य की सबसे पिछड़ी जनजाति जिसे भारत सरकार ने आदिम जनजाति (P.T.G) में शामिल किया है।
  • निवास: बांरा जिले की शहबाद और किशनगंज तहसीलों में।
  • विशेषता: भीख मांगना वर्जित है।
  • लड़की का जन्म: शुभ माना जाता है।

घर और बस्ती:

  1. टापरी: मिट्टी, पत्थर, लकड़ी और घास-फूस से बने घर।
  2. टोपा (गोपना/कोरूआ): घने जंगलों में पेड़ों या बल्लियों पर बनाई गई मचाननुमा झोपड़ी।
  3. सहराना: सहरिया जनजाति की बस्ती।
  4. सहरोल: सहरिया जनजाति के गांव।

अनाज और संग्रह:

  1. कुसिला: मिट्टी से निर्मित अनाज संग्रह की कोठियां।
  2. भड़ेरी: आटा संग्रह करने का पात्र।

धार्मिक मान्यताएं:

  1. कुल देवता: तेजा जी।
  2. कुल देवी: कोडिया देवी।
  3. गुरु: महर्षि वाल्मीकि।
  4. मुख्य धार्मिक आयोजन:
    • सीता बाड़ी नामक स्थान पर वाल्मीकि जी के मंदिर में।

सामाजिक संरचना:

  1. मुखिया: कोतवाल।
  2. सबसे बड़ी पंचायत: चैरसिया।

वस्त्र:

  1. सलुका: पुरुषों की अंगरखी।
  2. खपटा: पुरुषों का साफा।
  3. पंछा: पुरुषों की धोती।

मेलें:

  1. सीताबाड़ी का मेला (बांरा):
    • आयोजन: वैसाख अमावस्या।
    • स्थान: सीता बाड़ी।
    • विशेषता:
      • हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा मेला।
      • "सहरिया जनजाति का कुंभ" कहा जाता है।
  2. कपिल धारा का मेला (बांरा):
    • आयोजन: कार्तिक पूर्णिमा।

नृत्य:

  • शिकारी नृत्य: मुख्य पारंपरिक नृत्य।

यह जानकारी सहरिया जनजाति की सांस्कृतिक, सामाजिक, और धार्मिक विशिष्टताओं को विस्तार से प्रस्तुत करती है।



कंजर जनजाति - मुख्य जानकारी

निवास:

  • क्षेत्र: हाड़ौती क्षेत्र।
  • शब्द उत्पत्ति: "कंजर" शब्द "काननचार" से निकला है, जिसका अर्थ है "जंगल में विचरण करने वाला"।

विशेषताएं:

  1. प्रवृत्ति: अपराध-प्रवृत्ति के लिए कुख्यात।
  2. मृतक संस्कार: मृत व्यक्ति के मुख में शराब की बूंदें डाली जाती हैं।
  3. पाती मांगना:
    • अपराध से पूर्व अराध्य देव से आशीर्वाद लेना।
  4. सत्य की परंपरा: हाकम राजा का प्याला पीकर झूठ न बोलने की परंपरा।
  5. कुल देवता और देवी:
    • हनुमान जी।
    • चैथ माता।

मेला:

  • चैथर माता का मेला:
    • स्थान: चैथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर)।
    • तिथि: माघ कृष्ण चतुर्थी।
    • विशेषता: "कंजर जनजाति का कुंभ"।

घर की बनावट:

  • मुख्य दरवाजे के स्थान पर छोटी-छोटी खिड़कियां बनाई जाती हैं, जिससे भागने में सहायता मिलती है।

नृत्य:

  • चकरी नृत्य


कथौड़ी जनजाति - मुख्य जानकारी

निवास:

  • क्षेत्र: उदयपुर जिले की कोटड़ा, झालौड़, और सराड़ा तहसीलों में।
  • मूल स्थान: महाराष्ट्र।

विशेषताएं:

  1. उद्योग: खैर के वृक्ष से कत्था तैयार करने में दक्ष।
  2. महिलाओं का पहनावा:
    • मराठी अंदाज में एक साड़ी जिसे "फड़का" कहते हैं।
  3. पेय पदार्थ: महुआ की शराब पसंदीदा।
  4. भोजन:
    • गाय और लाल मुंह वाले बंदर का मांस।
    • दूध नहीं पीते।

वाद्ययंत्र:

  • सुषिर श्रेणी के: तारपी, पावरी।

नृत्य:

  • मावलिया नृत्य
  • होली नृत्य

यह जानकारी कंजर और कथौड़ी जनजातियों की अनूठी सामाजिक, सांस्कृतिक, और पारंपरिक विशेषताओं को प्रस्तुत करती है।





डामोर जनजाति - मुख्य जानकारी

निवास:

  • क्षेत्र: डूंगरपुर जिले की सिमलवाड़ा पंचायत समिति।

उत्पत्ति और सामाजिक संरचना:

  1. उत्पत्ति: राजपूतों से मानी जाती है।
  2. सामाजिक व्यवस्था:
    • एकलवादी: शादी के बाद लड़का मूल परिवार से अलग हो जाता है।

जीवन शैली:

  1. भोजन: मांसाहारी।
  2. आभूषण:
    • पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक आभूषण पहनते हैं।

पंचायत:

  • मुखिया: पंचायत के मुखिया को मुखी कहा जाता है।

उत्सव:

  • चाडिया:
    • होली के अवसर पर आयोजित डामोर जनजाति का विशेष उत्सव।

मेला:

  • ग्यारस रेवाड़ी का मेला:
    • स्थान: डूंगरपुर।
    • समय: अगस्त-सितंबर।

यह जानकारी डामोर जनजाति की अनूठी परंपराओं और सामाजिक विशेषताओं को दर्शाती है।






सांसी जनजाति - मुख्य जानकारी

निवास:

  • क्षेत्र: भरतपुर जिला।
  • जीवन शैली: खानाबदोश।

उत्पत्ति:

  • सांसी जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है।

वर्गीकरण:

  1. बीजा: धनाढ्य वर्ग।
  2. माला: गरीब वर्ग।

सामाजिक प्रथाएं:

  1. विधवा विवाह: प्रचलित नहीं है।
  2. विवाद समाधान: विवाद की स्थिति में हरिजन व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है।

मेला:

  • पीर बल्लूशाह का मेला:
    • स्थान: संगरिया।
    • समय: जून माह।


अन्य महत्वपूर्ण आदिवासी प्रथाएं और तथ्य:


  1. प्रमुख जनजातीय निवास क्षेत्र:

    • अधिकांश जनजातियां उदयपुर जिले में निवास करती हैं।
  2. प्रथाएं और परंपराएं:

    • लोकाई/कांधिया: मृत्युभोज की प्रथा।
    • भराड़ी:
      • वैवाहिक भित्ति चित्रण की लोक देवी।
      • बांसवाड़ा के कुशलगढ़ क्षेत्र में प्रचलित।
    • लीला मोरिया संस्कार: विवाह से संबंधित।
    • हलमा/हांडा/हीड़ा: सामूहिक सहयोग की भावना।
    • हमेलो:
      • जनजातीय उत्सव।
      • "माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान" द्वारा आयोजित।
      • उद्देश्य: सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण।
    • नातरा प्रथा: विधवा पुनर्विवाह की प्रथा।
  3. विशेष प्रथाएं:

    • मारू ढोल: संकट के समय ऊंची पहाड़ी पर ढोल बजाना।
    • फाइरे-फाइरे: भीलों का रणघोष।
    • कीकमारी: विपदा के समय जोर-जोर से चिल्लाना।
    • पाखरिया: सैनिक के घोड़े को मारने वाले भील को सम्मानजनक उपाधि।
    • मौताणा:
      • खून-खराबे पर जुर्माना।
      • जुर्माने की राशि: वढौतरा।
    • दापा करना: विवाह के लिए वर द्वारा वधू का दिया गया दावा।
    • बपौरी: दोपहर का विश्राम।
    • मावडिया: बंधुआ मजदूरी प्रथा।
      • अन्य नाम: सागड़ी, हाली।
    • हुण्डेल प्रथा: सीमित संसाधनों से सामूहिक कार्य।

यह जानकारी राजस्थान की आदिवासी और सांसी जनजातियों की विशेषताओं और उनकी अनूठी परंपराओं को उजागर करती है।