निवास:
- सिरोही जिले की आबुरोड़ और पिण्डवाड़ा तहसीलों में।
घर और गांव:
- घर: "घेर" कहलाते हैं।
- गांव: "फालिया" कहलाते हैं।
- गांव का मुखिया: "सहलोत" कहलाता है।
संस्कृति और परंपराएं:
- सोहरी: अनाज संग्रहित करने की कोठियां।
- कांधिया: मृत्युभोज की प्रथा।
- हरीभावरी: सामूहिक कृषि की परंपरा।
- हेलरू: गरासिया जनजाति के विकास हेतु सहकारी संस्था।
- हुरे: मृत व्यक्ति की स्मृति में मिट्टी का स्मारक।
- अस्थि विसर्जन: नक्की झील (माउंट आबू) में।
- आदर्श पक्षी: मोर।
मेलों और त्योहारों:
- गौर का मेला/अन्जारी का मेला: सिरोही में वैसाख पूर्णिमा पर।
- मनखांरो मेलो: चैपानी क्षेत्र, गुजरात।
विवाह परंपराएं:
- मोर बांधिया विवाह: हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार।
- पहरावणा विवाह: बिना फेरे लिए जाने वाला विवाह।
- तन्ना विवाह: लड़की को भगाकर किया जाने वाला विवाह।
नृत्य:
- वालर
- लूर
- कूद
- जवारा
- मांदल
- मोरिया
सहरिया जनजाति - मुख्य जानकारी
पहचान:
- राज्य की सबसे पिछड़ी जनजाति जिसे भारत सरकार ने आदिम जनजाति (P.T.G) में शामिल किया है।
- निवास: बांरा जिले की शहबाद और किशनगंज तहसीलों में।
- विशेषता: भीख मांगना वर्जित है।
- लड़की का जन्म: शुभ माना जाता है।
घर और बस्ती:
- टापरी: मिट्टी, पत्थर, लकड़ी और घास-फूस से बने घर।
- टोपा (गोपना/कोरूआ): घने जंगलों में पेड़ों या बल्लियों पर बनाई गई मचाननुमा झोपड़ी।
- सहराना: सहरिया जनजाति की बस्ती।
- सहरोल: सहरिया जनजाति के गांव।
अनाज और संग्रह:
- कुसिला: मिट्टी से निर्मित अनाज संग्रह की कोठियां।
- भड़ेरी: आटा संग्रह करने का पात्र।
धार्मिक मान्यताएं:
- कुल देवता: तेजा जी।
- कुल देवी: कोडिया देवी।
- गुरु: महर्षि वाल्मीकि।
- मुख्य धार्मिक आयोजन:
- सीता बाड़ी नामक स्थान पर वाल्मीकि जी के मंदिर में।
सामाजिक संरचना:
- मुखिया: कोतवाल।
- सबसे बड़ी पंचायत: चैरसिया।
वस्त्र:
- सलुका: पुरुषों की अंगरखी।
- खपटा: पुरुषों का साफा।
- पंछा: पुरुषों की धोती।
मेलें:
- सीताबाड़ी का मेला (बांरा):
- आयोजन: वैसाख अमावस्या।
- स्थान: सीता बाड़ी।
- विशेषता:
- हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा मेला।
- "सहरिया जनजाति का कुंभ" कहा जाता है।
- कपिल धारा का मेला (बांरा):
- आयोजन: कार्तिक पूर्णिमा।
नृत्य:
- शिकारी नृत्य: मुख्य पारंपरिक नृत्य।
यह जानकारी सहरिया जनजाति की सांस्कृतिक, सामाजिक, और धार्मिक विशिष्टताओं को विस्तार से प्रस्तुत करती है।
कंजर जनजाति - मुख्य जानकारी
निवास:
- क्षेत्र: हाड़ौती क्षेत्र।
- शब्द उत्पत्ति: "कंजर" शब्द "काननचार" से निकला है, जिसका अर्थ है "जंगल में विचरण करने वाला"।
विशेषताएं:
- प्रवृत्ति: अपराध-प्रवृत्ति के लिए कुख्यात।
- मृतक संस्कार: मृत व्यक्ति के मुख में शराब की बूंदें डाली जाती हैं।
- पाती मांगना:
- अपराध से पूर्व अराध्य देव से आशीर्वाद लेना।
- सत्य की परंपरा: हाकम राजा का प्याला पीकर झूठ न बोलने की परंपरा।
- कुल देवता और देवी:
- हनुमान जी।
- चैथ माता।
मेला:
- चैथर माता का मेला:
- स्थान: चैथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर)।
- तिथि: माघ कृष्ण चतुर्थी।
- विशेषता: "कंजर जनजाति का कुंभ"।
घर की बनावट:
- मुख्य दरवाजे के स्थान पर छोटी-छोटी खिड़कियां बनाई जाती हैं, जिससे भागने में सहायता मिलती है।
नृत्य:
- चकरी नृत्य।
कथौड़ी जनजाति - मुख्य जानकारी
निवास:
- क्षेत्र: उदयपुर जिले की कोटड़ा, झालौड़, और सराड़ा तहसीलों में।
- मूल स्थान: महाराष्ट्र।
विशेषताएं:
- उद्योग: खैर के वृक्ष से कत्था तैयार करने में दक्ष।
- महिलाओं का पहनावा:
- मराठी अंदाज में एक साड़ी जिसे "फड़का" कहते हैं।
- पेय पदार्थ: महुआ की शराब पसंदीदा।
- भोजन:
- गाय और लाल मुंह वाले बंदर का मांस।
- दूध नहीं पीते।
वाद्ययंत्र:
- सुषिर श्रेणी के: तारपी, पावरी।
नृत्य:
- मावलिया नृत्य।
- होली नृत्य।
यह जानकारी कंजर और कथौड़ी जनजातियों की अनूठी सामाजिक, सांस्कृतिक, और पारंपरिक विशेषताओं को प्रस्तुत करती है।
डामोर जनजाति - मुख्य जानकारी
निवास:
- क्षेत्र: डूंगरपुर जिले की सिमलवाड़ा पंचायत समिति।
उत्पत्ति और सामाजिक संरचना:
- उत्पत्ति: राजपूतों से मानी जाती है।
- सामाजिक व्यवस्था:
- एकलवादी: शादी के बाद लड़का मूल परिवार से अलग हो जाता है।
जीवन शैली:
- भोजन: मांसाहारी।
- आभूषण:
- पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक आभूषण पहनते हैं।
पंचायत:
- मुखिया: पंचायत के मुखिया को मुखी कहा जाता है।
उत्सव:
- चाडिया:
- होली के अवसर पर आयोजित डामोर जनजाति का विशेष उत्सव।
मेला:
- ग्यारस रेवाड़ी का मेला:
- स्थान: डूंगरपुर।
- समय: अगस्त-सितंबर।
यह जानकारी डामोर जनजाति की अनूठी परंपराओं और सामाजिक विशेषताओं को दर्शाती है।
सांसी जनजाति - मुख्य जानकारी
निवास:
- क्षेत्र: भरतपुर जिला।
- जीवन शैली: खानाबदोश।
उत्पत्ति:
- सांसी जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है।
वर्गीकरण:
- बीजा: धनाढ्य वर्ग।
- माला: गरीब वर्ग।
सामाजिक प्रथाएं:
- विधवा विवाह: प्रचलित नहीं है।
- विवाद समाधान: विवाद की स्थिति में हरिजन व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है।
मेला:
- पीर बल्लूशाह का मेला:
- स्थान: संगरिया।
- समय: जून माह।
अन्य महत्वपूर्ण आदिवासी प्रथाएं और तथ्य:
प्रमुख जनजातीय निवास क्षेत्र:
- अधिकांश जनजातियां उदयपुर जिले में निवास करती हैं।
प्रथाएं और परंपराएं:
- लोकाई/कांधिया: मृत्युभोज की प्रथा।
- भराड़ी:
- वैवाहिक भित्ति चित्रण की लोक देवी।
- बांसवाड़ा के कुशलगढ़ क्षेत्र में प्रचलित।
- लीला मोरिया संस्कार: विवाह से संबंधित।
- हलमा/हांडा/हीड़ा: सामूहिक सहयोग की भावना।
- हमेलो:
- जनजातीय उत्सव।
- "माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान" द्वारा आयोजित।
- उद्देश्य: सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण।
- नातरा प्रथा: विधवा पुनर्विवाह की प्रथा।
विशेष प्रथाएं:
- मारू ढोल: संकट के समय ऊंची पहाड़ी पर ढोल बजाना।
- फाइरे-फाइरे: भीलों का रणघोष।
- कीकमारी: विपदा के समय जोर-जोर से चिल्लाना।
- पाखरिया: सैनिक के घोड़े को मारने वाले भील को सम्मानजनक उपाधि।
- मौताणा:
- खून-खराबे पर जुर्माना।
- जुर्माने की राशि: वढौतरा।
- दापा करना: विवाह के लिए वर द्वारा वधू का दिया गया दावा।
- बपौरी: दोपहर का विश्राम।
- मावडिया: बंधुआ मजदूरी प्रथा।
- अन्य नाम: सागड़ी, हाली।
- हुण्डेल प्रथा: सीमित संसाधनों से सामूहिक कार्य।
यह जानकारी राजस्थान की आदिवासी और सांसी जनजातियों की विशेषताओं और उनकी अनूठी परंपराओं को उजागर करती है।