जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:
- जन्म: 9 मई, 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल 3, विक्रम संवत 1597) रविवार को कुम्भलगढ़ के प्रसिद्ध 'बादल महल' में हुआ।
- पिता: महाराणा उदयसिंह।
- माता: जैवन्ता बाई (पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री)।
- बचपन में उन्हें स्थानीय भाषा में 'कीका' कहा जाता था, जिसका अर्थ 'छोटे बच्चे' से है।
- 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह रामरख पंवार की पुत्री अजबदे से हुआ, जिससे उनके पुत्र कुंवर अमरसिंह का जन्म हुआ।
सिंहासन का संघर्ष:
- राणा उदयसिंह ने अपनी पत्नी भटियाणी रानी धीर बाई के पुत्र जगमाल को युवराज घोषित किया था।
- उदयसिंह की मृत्यु के बाद, धीर बाई के आग्रह पर कुछ सरदारों ने जगमाल का राजतिलक कर दिया।
- ग्वालियर के रामशाह तंवर और जालौर के सोनगरा अखैराज चौहान ने इस निर्णय का विरोध किया और कहा कि ज्येष्ठ पुत्र राणा प्रताप ही सिंहासन के अधिकारी हैं।
- रावत कृष्णदास और अन्य सरदारों ने जगमाल को सिंहासन से हटाकर राणा प्रताप को गोगुंदा में सिंहासन पर बैठाया।
- राज्याभिषेक: 28 फरवरी, 1572 को 32 वर्ष की आयु में गोगुंदा में महादेव बावड़ी के पास राणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।
जगमाल और अकबर का संबंध:
- सिंहासन से हटाए जाने के बाद जगमाल अकबर के पास चला गया।
- अकबर ने उसे जहाजपुर और सिरोही की आधी जागीर दे दी।
- 1583 ई. में सिरोही में दताणी के युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो गई।
राणा प्रताप और अकबर का संघर्ष:
- राणा प्रताप के समय मुगलों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था।
- राणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
- उन्होंने भीलों को संगठित कर उनके नेता पूंजा भील के नेतृत्व में सैन्य व्यवस्था में शामिल किया।
- यह पहली बार था जब भीलों को सैन्य-व्यवस्था में उच्च पद देकर सम्मानित किया गया।
राजनीतिक रणनीति:
- राणा प्रताप ने मुगलों से दूर रहकर युद्ध की रणनीति बनाने के लिए गोगुंदा से कुम्भलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
- वह जंगलों, घाटियों और पहाड़ों में रहकर संघर्ष करते रहे।
महत्त्व और शासनकाल:
- राणा प्रताप ने 25 वर्षों (1572-1597 ई.) तक मेवाड़ पर शासन किया।
- उनका शासन स्वतंत्रता, आत्मगौरव और संघर्ष का प्रतीक था।
- राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार किया और जीवनभर मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
- उनके नेतृत्व और साहस ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक अमर नायक बना दिया।
मूल सिद्धांत:
- राणा प्रताप का जीवन आदर्श था, जो स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना का प्रतीक है।
- उन्होंने दिखाया कि स्वतंत्रता के लिए समर्पित जीवन कितना मूल्यवान हो सकता है।
अकबर द्वारा राणा प्रताप के पास भेजे गए चार शिष्ट मंडल
1. जलाल खाँ कोरची का शिष्टमंडल:
- गुजरात विजय के बाद अकबर ने जलाल खाँ कोरची को राणा प्रताप के पास भेजा।
- उद्देश्य: राणा को अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए समझाना।
- परिणाम: राणा प्रताप ने इस प्रस्ताव को शिष्टता के साथ अस्वीकार कर दिया।
2. मानसिंह का शिष्टमंडल:
- मानसिंह को गुजरात से लौटते समय आदेश दिया गया कि वह उदयपुर जाकर राणा प्रताप को समझाए।
- शिष्टमंडल में प्रमुख सदस्य:
- मानसिंह, शाहकुली खाँ, जगन्नाथ, राजा गोपाल, बहादुर खाँ, लश्कर खाँ, जलाल खाँ, भोज आदि।
- वार्ता का स्थान:
- अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार, यह वार्ता उदयपुर में हुई।
- 'अमरकाव्यम्' में उल्लेख है कि यह भेंट उदयसागर की पाल पर हुई।
- घटना का विवरण:
- प्रताप ने मानसिंह और उनकी सेना को भोजन के लिए आमंत्रित किया।
- प्रताप ने स्वयं भोजन में भाग नहीं लिया।
- जब मानसिंह ने प्रताप की अनुपस्थिति का कारण पूछा, तो बताया गया कि राणा प्रताप अपने को उच्च कुल का क्षत्रिय मानते हैं और यवनों से संबंध के कारण उनके साथ भोजन नहीं कर सकते।
- मानसिंह ने यह सुनकर क्रोधित होकर अकबर को राणा प्रताप के विरुद्ध भड़काया।
- मानसिंह ने राणा प्रताप को चुनौती भरा पत्र भेजा।
3. भगवंतदास का शिष्टमंडल:
- अकबर ने भगवंतदास के नेतृत्व में एक और शिष्टमंडल राणा प्रताप के पास भेजा।
- उद्देश्य: राणा को समझाना और अकबर की सर्वोच्चता स्वीकारने के लिए प्रेरित करना।
- परिणाम: यह प्रयास भी विफल रहा।
4. टोडरमल का शिष्टमंडल:
- तीसरी बार अकबर ने टोडरमल के नेतृत्व में शिष्टमंडल भेजा।
- उद्देश्य: राणा को शांतिपूर्ण ढंग से अधीनता स्वीकारने के लिए राजी करना।
- परिणाम: राणा प्रताप ने इसे भी अस्वीकार कर दिया।
हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576)
नामकरण:
- कर्नल टॉड: इसे मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा।
- अबुल फजल: इसे खमनौर का युद्ध कहा।
- बदायूंनी: इसे गोगुंदा का युद्ध कहा।
युद्ध के कारण:
- राणा प्रताप द्वारा अकबर की अधीनता न स्वीकारना।
- मानसिंह और अन्य शिष्टमंडलों की विफलता।
- मानसिंह द्वारा प्रताप को युद्ध के लिए चुनौती।
राणा प्रताप की रणनीति:
- स्वभूमिध्वंस की नीति (Scorched Earth Policy):
- प्रताप ने मेवाड़ के उपजाऊ क्षेत्रों को खाली करवाया और उन्हें नष्ट कर दिया।
- उद्देश्य: मुगल सेना को रसद और अन्य संसाधन न मिलने देना।
- भीलों की सहायता:
- पूंजा भील के नेतृत्व में भीलों को सुरक्षा और गुप्तचर व्यवस्था में लगाया।
- किलों का उपयोग:
- जनता को कुम्भलगढ़ और कलवाड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया।
- गिरवा क्षेत्र में यातायात के साधन, खाद्य सामग्री, और घास नष्ट कर दी।
युद्ध का विवरण:
- युद्धस्थल: हल्दीघाटी, राजसमंद।
- राणा प्रताप और उनके सेनापति भामाशाह, झाला मान और भील सहयोगियों ने वीरता से मुगल सेना का सामना किया।
- प्रताप ने अपने घोड़े चेतक के अद्वितीय साहस के बल पर युद्धभूमि में अपने जीवन की रक्षा की।
परिणाम:
- यह युद्ध निर्णायक नहीं था।
- मुगलों को हल्दीघाटी में विजय मिली, लेकिन वे मेवाड़ को पूरी तरह अधीन नहीं कर सके।
- राणा प्रताप ने संघर्ष जारी रखा और अपना प्रभाव बरकरार रखा।
हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन
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