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महाराणा प्रताप 1572-1597 ई.)


जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:

  • जन्म: 9 मई, 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल 3, विक्रम संवत 1597) रविवार को कुम्भलगढ़ के प्रसिद्ध 'बादल महल' में हुआ।
  • पिता: महाराणा उदयसिंह।
  • माता: जैवन्ता बाई (पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री)।
  • बचपन में उन्हें स्थानीय भाषा में 'कीका' कहा जाता था, जिसका अर्थ 'छोटे बच्चे' से है।
  • 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह रामरख पंवार की पुत्री अजबदे से हुआ, जिससे उनके पुत्र कुंवर अमरसिंह का जन्म हुआ।

सिंहासन का संघर्ष:

  • राणा उदयसिंह ने अपनी पत्नी भटियाणी रानी धीर बाई के पुत्र जगमाल को युवराज घोषित किया था।
  • उदयसिंह की मृत्यु के बाद, धीर बाई के आग्रह पर कुछ सरदारों ने जगमाल का राजतिलक कर दिया।
  • ग्वालियर के रामशाह तंवर और जालौर के सोनगरा अखैराज चौहान ने इस निर्णय का विरोध किया और कहा कि ज्येष्ठ पुत्र राणा प्रताप ही सिंहासन के अधिकारी हैं।
  • रावत कृष्णदास और अन्य सरदारों ने जगमाल को सिंहासन से हटाकर राणा प्रताप को गोगुंदा में सिंहासन पर बैठाया।
  • राज्याभिषेक: 28 फरवरी, 1572 को 32 वर्ष की आयु में गोगुंदा में महादेव बावड़ी के पास राणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।

जगमाल और अकबर का संबंध:

  • सिंहासन से हटाए जाने के बाद जगमाल अकबर के पास चला गया।
  • अकबर ने उसे जहाजपुर और सिरोही की आधी जागीर दे दी।
  • 1583 ई. में सिरोही में दताणी के युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो गई।

राणा प्रताप और अकबर का संघर्ष:

  • राणा प्रताप के समय मुगलों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था।
  • राणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
  • उन्होंने भीलों को संगठित कर उनके नेता पूंजा भील के नेतृत्व में सैन्य व्यवस्था में शामिल किया।
  • यह पहली बार था जब भीलों को सैन्य-व्यवस्था में उच्च पद देकर सम्मानित किया गया।

राजनीतिक रणनीति:

  • राणा प्रताप ने मुगलों से दूर रहकर युद्ध की रणनीति बनाने के लिए गोगुंदा से कुम्भलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
  • वह जंगलों, घाटियों और पहाड़ों में रहकर संघर्ष करते रहे।

महत्त्व और शासनकाल:

  • राणा प्रताप ने 25 वर्षों (1572-1597 ई.) तक मेवाड़ पर शासन किया।
  • उनका शासन स्वतंत्रता, आत्मगौरव और संघर्ष का प्रतीक था।
  • राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार किया और जीवनभर मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
  • उनके नेतृत्व और साहस ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक अमर नायक बना दिया।

मूल सिद्धांत:

  • राणा प्रताप का जीवन आदर्श था, जो स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना का प्रतीक है।
  • उन्होंने दिखाया कि स्वतंत्रता के लिए समर्पित जीवन कितना मूल्यवान हो सकता है।





अकबर द्वारा राणा प्रताप के पास भेजे गए चार शिष्ट मंडल

1. जलाल खाँ कोरची का शिष्टमंडल:

  • गुजरात विजय के बाद अकबर ने जलाल खाँ कोरची को राणा प्रताप के पास भेजा।
  • उद्देश्य: राणा को अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए समझाना।
  • परिणाम: राणा प्रताप ने इस प्रस्ताव को शिष्टता के साथ अस्वीकार कर दिया।

2. मानसिंह का शिष्टमंडल:

  • मानसिंह को गुजरात से लौटते समय आदेश दिया गया कि वह उदयपुर जाकर राणा प्रताप को समझाए।
  • शिष्टमंडल में प्रमुख सदस्य:
    • मानसिंह, शाहकुली खाँ, जगन्नाथ, राजा गोपाल, बहादुर खाँ, लश्कर खाँ, जलाल खाँ, भोज आदि।
  • वार्ता का स्थान:
    • अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार, यह वार्ता उदयपुर में हुई।
    • 'अमरकाव्यम्' में उल्लेख है कि यह भेंट उदयसागर की पाल पर हुई।
  • घटना का विवरण:
    • प्रताप ने मानसिंह और उनकी सेना को भोजन के लिए आमंत्रित किया।
    • प्रताप ने स्वयं भोजन में भाग नहीं लिया।
    • जब मानसिंह ने प्रताप की अनुपस्थिति का कारण पूछा, तो बताया गया कि राणा प्रताप अपने को उच्च कुल का क्षत्रिय मानते हैं और यवनों से संबंध के कारण उनके साथ भोजन नहीं कर सकते।
    • मानसिंह ने यह सुनकर क्रोधित होकर अकबर को राणा प्रताप के विरुद्ध भड़काया।
    • मानसिंह ने राणा प्रताप को चुनौती भरा पत्र भेजा।

3. भगवंतदास का शिष्टमंडल:

  • अकबर ने भगवंतदास के नेतृत्व में एक और शिष्टमंडल राणा प्रताप के पास भेजा।
  • उद्देश्य: राणा को समझाना और अकबर की सर्वोच्चता स्वीकारने के लिए प्रेरित करना।
  • परिणाम: यह प्रयास भी विफल रहा।

4. टोडरमल का शिष्टमंडल:

  • तीसरी बार अकबर ने टोडरमल के नेतृत्व में शिष्टमंडल भेजा।
  • उद्देश्य: राणा को शांतिपूर्ण ढंग से अधीनता स्वीकारने के लिए राजी करना।
  • परिणाम: राणा प्रताप ने इसे भी अस्वीकार कर दिया।

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576)

नामकरण:

  • कर्नल टॉड: इसे मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा।
  • अबुल फजल: इसे खमनौर का युद्ध कहा।
  • बदायूंनी: इसे गोगुंदा का युद्ध कहा।

युद्ध के कारण:

  • राणा प्रताप द्वारा अकबर की अधीनता न स्वीकारना।
  • मानसिंह और अन्य शिष्टमंडलों की विफलता।
  • मानसिंह द्वारा प्रताप को युद्ध के लिए चुनौती।

राणा प्रताप की रणनीति:

  1. स्वभूमिध्वंस की नीति (Scorched Earth Policy):
    • प्रताप ने मेवाड़ के उपजाऊ क्षेत्रों को खाली करवाया और उन्हें नष्ट कर दिया।
    • उद्देश्य: मुगल सेना को रसद और अन्य संसाधन न मिलने देना।
  2. भीलों की सहायता:
    • पूंजा भील के नेतृत्व में भीलों को सुरक्षा और गुप्तचर व्यवस्था में लगाया।
  3. किलों का उपयोग:
    • जनता को कुम्भलगढ़ और कलवाड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया।
    • गिरवा क्षेत्र में यातायात के साधन, खाद्य सामग्री, और घास नष्ट कर दी।

युद्ध का विवरण:

  • युद्धस्थल: हल्दीघाटी, राजसमंद।
  • राणा प्रताप और उनके सेनापति भामाशाह, झाला मान और भील सहयोगियों ने वीरता से मुगल सेना का सामना किया।
  • प्रताप ने अपने घोड़े चेतक के अद्वितीय साहस के बल पर युद्धभूमि में अपने जीवन की रक्षा की।

परिणाम:

  • यह युद्ध निर्णायक नहीं था।
  • मुगलों को हल्दीघाटी में विजय मिली, लेकिन वे मेवाड़ को पूरी तरह अधीन नहीं कर सके।
  • राणा प्रताप ने संघर्ष जारी रखा और अपना प्रभाव बरकरार रखा।


हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन

रणनीतिक स्थिति:

  • रामशाह तंवर जैसे अनुभवी सामंतों ने सुझाव दिया था कि शत्रु से खुले मैदान में युद्ध न किया जाए।
  • युद्ध के दौरान दोनों सेनाओं में राजपूत योद्धाओं की संख्या इतनी अधिक थी कि यह पहचानना कठिन हो गया कि कौन अपने पक्ष का है और कौन शत्रु का।

बदायूंनी और आसफ खाँ का संवाद:

  • बदायूंनी ने आसफ खाँ से पूछा, "हम अपने और शत्रु के राजपूतों की पहचान कैसे करें?"
  • आसफ खाँ का उत्तर था:
    • "तुम वार करते जाओ, चाहे जिस पक्ष का राजपूत मारा जाए, इससे इस्लाम को हर हाल में लाभ होगा।"
    • इस उत्तर से मुगलों की मानसिकता और रणनीतिक सोच का संकेत मिलता है।

युद्ध में हाथियों का योगदान:

  • राणा प्रताप के हाथी:

    • लूना और रामप्रसाद:
      • कवचधारी हाथी, सूँड में जहरीले खंजर और पूंछ में धारदार तलवारें बांधे हुए।
      • दुश्मन सेना को चीरते हुए आगे बढ़ रहे थे।
    • खांडराव और चक्रवाप भी सेना में शामिल थे।
  • मुगलों के हाथी:

    • गज-मुक्ता: लूना के विरुद्ध उतारा गया।
    • गजराज और रन-मदार: रामप्रसाद के खिलाफ तैनात।
    • हाथियों में भीषण और खूनी संघर्ष हुआ।
  • महावतों पर हमले:

    • लूना और रामप्रसाद के महावतों को गोली मार दी गई।
    • रामप्रसाद पर एक मुगल महावत ने नियंत्रण पा लिया।

राणा प्रताप और मानसिंह का आमना-सामना:

  • मानसिंह का हाथी:
    • "मर्दाना," जिसके हौदे में मानसिंह बैठा था।
  • राणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक के साथ मानसिंह के हाथी पर हमला किया।
    • चेतक ने अपने अगले पैर मानसिंह के हाथी पर रख दिए।
    • राणा ने भाले से वार किया, जो महावत के शरीर को चीरता हुआ हौदे को पार कर गया।
    • मानसिंह ने हौदे में छुपकर अपनी जान बचाई।

चेतक का साहस:

  • मानसिंह का हाथी, जो महावत विहीन हो चुका था, ने अपने खंजर से चेतक का एक पैर काट दिया।
  • चेतक ने घायल अवस्था में भी राणा प्रताप को युद्धभूमि से सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
  • चेतक की वीरता और बलिदान इस युद्ध का एक अमर प्रसंग बन गया।

युद्ध का परिणाम और प्रभाव:

  • हल्दीघाटी का युद्ध निर्णायक नहीं था, लेकिन राणा प्रताप की वीरता और रणनीति ने मुगलों को मेवाड़ पर पूर्ण नियंत्रण नहीं करने दिया।
  • राणा प्रताप ने युद्ध में अपने पराक्रम और देशभक्ति का परिचय दिया, जो इतिहास में अमर है !

हल्दीघाटी युद्ध का संपूर्ण वर्णन

युद्ध के मुख्य प्रसंग और घटनाएँ:

राणा प्रताप के हाथियों का पराक्रम:
  • लूना और रामप्रसाद:

    • कवचधारी और अपनी सूंड में जहरीले खंजर तथा पूंछ में तलवारें लिए हुए।
    • लूना ने केंद्र की ओर बढ़ते हुए दुश्मन सेना को चीरते हुए आगे बढ़ने की कोशिश की।
    • मुगलों ने गज-मुक्ता (गजमुख) को लूना के खिलाफ उतारा।
    • लूना के महावत को गोली मार दी गई।
  • रामप्रसाद का संघर्ष:

    • रामप्रसाद दाहिने हरावल की ओर तेजी से बढ़ा।
    • मुगलों ने गजराज और रन-मदार हाथियों को रामप्रसाद के सामने खड़ा किया।
    • खूनी संघर्ष में रामप्रसाद के महावत को भी गोली मार दी गई।
    • एक मुगल महावत ने रामप्रसाद की पीठ पर चढ़कर उसे नियंत्रित कर लिया।

राणा प्रताप और मानसिंह का सामना:
  • मानसिंह का हाथी: "मर्दाना"।

    • राणा प्रताप अपने घोड़े चेतक के साथ मानसिंह के हाथी के पास पहुँचे।
    • चेतक ने अपने अगले पैर मानसिंह के हाथी पर रख दिए।
    • राणा ने भाले से वार किया, जो महावत के शरीर को पार कर हौदे तक पहुँच गया।
    • मानसिंह ने हौदे में छुपकर अपनी जान बचाई।
  • चेतक का बलिदान:

    • मानसिंह के हाथी ने अपने खंजर से चेतक का एक पैर काट दिया।
    • चेतक ने घायल अवस्था में भी राणा को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया।
    • बलीचा नामक स्थान पर चेतक ने अंतिम साँस ली।
    • राणा ने चेतक का अंतिम संस्कार कर उसे श्रद्धांजलि अर्पित की।

राणा की रक्षा और झाला बीदा का बलिदान:
  • सादड़ी के झाला बीदा ने राणा के सिर से छत्र खींचकर स्वयं धारण कर लिया।
  • वह मानसिंह के सैनिकों पर झपट पड़ा और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
  • इस बलिदान ने राणा को युद्धक्षेत्र से सुरक्षित हटने का अवसर दिया।

युद्ध का परिणाम और प्रभाव:

मुगलों की कठिनाईयाँ:
  • भय और थकावट:
    • मुगल सेना भीषण गर्मी और थकावट से जूझ रही थी।
    • बदायूंनी ने लिखा कि गर्मी इतनी अधिक थी कि सैनिकों का दिमाग पिघलने जैसा महसूस हो रहा था।
  • रसद मार्ग अवरुद्ध:
    • राणा ने मुगलों के रसद मार्ग काट दिए।
    • मुगल सैनिक भोजन की कमी से जूझते हुए अपने जानवरों को मारकर पेट भरने पर विवश हो गए।
  • भीलों का हमला:
    • भील नेता पूंजा ने मुगल शिविरों पर हमला कर खाद्य सामग्री लूट ली।
युद्ध का समापन:
  • मुगल सेना गोगुंदा के लिए लौट गई।
  • प्रताप ने गोगुंदा को पुनः अपने अधीन कर लिया।
  • बदायूंनी ने बादशाह को हाथी रामप्रसाद (बाद में नाम बदलकर पीरप्रसाद कर दिया गया) और युद्ध की रिपोर्ट भेजी।
  • अकबर ने युद्ध के परिणाम से खिन्न होकर मानसिंह और आसफ खाँ को दरबार में सम्मिलित होने से वंचित कर दिया।

रणनीतिक दृष्टिकोण:

  • हल्दीघाटी का युद्ध भले ही निर्णायक न रहा हो, लेकिन यह स्पष्ट हुआ कि अकबर की सेना राणा प्रताप के साहस, रणनीति, और मेवाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के सामने टिक नहीं सकी।
  • राणा प्रताप की स्वभूमिध्वंस की नीति और भील सेना के योगदान ने मुगलों को पराजय के कगार पर ला खड़ा किया।
  • यह युद्ध मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया और राणा प्रताप की अमिट वीरता को इतिहास में अमर कर गया !




हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय के तर्क

  1. जमीन के पट्टे जारी करना (ताम्रपत्र):

    • इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा के अनुसार, हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने आसपास के गांवों की जमीनों के पट्टे जारी किए।
    • यह केवल उस शासक द्वारा किया जा सकता था, जिसका उस क्षेत्र पर अधिकार हो।
    • यह प्रमाणित करता है कि हल्दीघाटी और आसपास के इलाके पर महाराणा प्रताप का नियंत्रण बना रहा।
  2. अकबर की असफलता:

    • हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर ने 13 अक्टूबर, 1576 को स्वयं गोगुंदा की यात्रा की।
    • वह प्रताप को बंदी बनाने में असफल रहा और खाली हाथ लौटना पड़ा।
    • यह घटना राणा प्रताप के रणनीतिक कौशल और मुगलों के असफल अभियानों को दर्शाती है।
  3. मुगलों का लौटना और गोगुंदा पर प्रताप का अधिकार:

    • हल्दीघाटी युद्ध के तुरंत बाद, राणा प्रताप ने गोगुंदा पर पुनः अधिकार कर लिया।
    • मुगल प्रशासक मुजाहिद बेग की हत्या और क्षेत्र पर महाराणा का कब्जा उनके पराक्रम को प्रमाणित करता है।

जेम्स टॉड की तुलना: हल्दीघाटी और थर्मोपल्ली

  • थर्मोपल्ली युद्ध (480 ई.पू.):

    • फारस और यूनान के बीच लड़ा गया। यूनानी सेनानायक लियोनिडास और उनके 300 सैनिकों ने फारसी सेना का डटकर मुकाबला किया।
    • लियोनिडास ने अपने प्राणों की आहुति देकर अपनी मातृभूमि के प्रति अद्वितीय साहस का परिचय दिया।
  • हल्दीघाटी युद्ध (1576 ई.):

    • जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ की थर्मोपल्ली और राणा प्रताप व उनके सैनिकों को लियोनिडास की तरह वीर बताया।
    • हल्दीघाटी युद्ध भारतीय इतिहास में उसी प्रकार साहस और बलिदान का प्रतीक है, जैसा कि थर्मोपल्ली युद्ध यूनान के लिए है।

अकबर के प्रयास और विफलताएँ:

  1. शाहबाज खाँ का नेतृत्व:

    • अकबर ने अक्टूबर 1577 में शाहबाज खाँ को राणा प्रताप के विरुद्ध भेजा।
    • शाहबाज खाँ ने 1578 में कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया और किले पर अस्थायी रूप से अधिकार कर लिया।
    • लेकिन प्रताप के संघर्ष और कुशल रणनीति के कारण शाहबाज खाँ को मई 1580 में मेवाड़ छोड़ना पड़ा।
  2. कुम्भलगढ़ युद्ध:

    • कुम्भलगढ़ पर मुगलों का अस्थायी कब्जा भी लंबे समय तक टिक नहीं सका।
    • प्रताप ने पहाड़ियों से अपनी गुरिल्ला रणनीति अपनाते हुए मेवाड़ के बड़े हिस्से पर पुनः अधिकार कर लिया।

महाराणा प्रताप की रणनीति और संघर्ष की गाथा

  • गुरिल्ला युद्ध:

    • प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में अपने ठिकाने बनाए।
    • दुश्मन की रसद काटना, अचानक हमले करना और क्षेत्रीय समर्थन से मुगलों को थका देना उनकी रणनीति का हिस्सा था।
  • भीलों का समर्थन:

    • हल्दीघाटी युद्ध में भीलों का बड़ा योगदान था। उन्होंने मुगलों के शिविरों पर हमला कर खाद्य सामग्री लूटी।
  • मेवाड़ की स्वतंत्रता का प्रतीक:

    • हल्दीघाटी युद्ध और उसके बाद राणा प्रताप का संघर्ष भारतीय स्वाधीनता संग्राम की प्रेरणा बन गया।


अब्दुल रहीम खानखाना का अभियान (1580) और महाराणा प्रताप की उदारता

  1. मुगल अभियान की असफलता:
    • अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को मेवाड़ पर अधिकार के लिए भेजा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ।
    • कुंवर अमरसिंह ने शेरपुर में मुगल शिविर पर हमला कर खानखाना के परिवार की महिलाओं को बंदी बना लिया।
  2. प्रताप की महानता:
    • जब महाराणा प्रताप को इसकी सूचना मिली, उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि खानखाना के परिवार को मुक्त कर दिया जाए।
    • यह उदारता अब्दुल रहीम खानखाना को द्रवित कर गई और प्रताप की नैतिक उच्चता को दर्शाती है।

भामाशाह का योगदान और आर्थिक समर्थन

  1. दानवीर भामाशाह:

    • चूलिया गाँव में भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 25 लाख रुपये और 20,000 अशर्फियां भेंट कीं।
    • इस धन से महाराणा ने 25,000 सैनिकों की 12 वर्षों तक देखभाल की।
  2. भामाशाह का प्रधानमंत्री बनना:

    • भामाशाह की योग्यता को देखते हुए प्रताप ने उन्हें मेवाड़ का प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
    • उनके योगदान को "मेवाड़ का उद्धारक" और "दानवीर" कहा गया।
  3. विवाद और ऐतिहासिक दृष्टिकोण:

    • इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार, यह धन संभवतः मेवाड़ के छिपाए गए राजकीय खजाने का हिस्सा था।
    • यह दिखाता है कि भामाशाह ने अपनी निजी संपत्ति नहीं बल्कि राजकीय कोष का सही समय पर उपयोग किया।

दिवेर का युद्ध (1582): मेवाड़ का माराथन

  1. युद्ध का प्रारंभ:

    • दिवेर में महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना पर बड़ा आक्रमण किया।
    • अकबर के काका सेरिमा सुल्तान खां की हत्या कुंवर अमरसिंह ने अपने भाले से की।
    • इस विजय ने मुगलों की ताकत को कमजोर कर दिया और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया।
  2. महत्व और उपाधियाँ:

    • कर्नल टॉड ने इसे "प्रताप के गौरव का प्रतीक" और "मेवाड़ का माराथन" कहा।
    • यह युद्ध मुगलों पर महाराणा प्रताप की निर्णायक विजय का प्रतीक बन गया।
  3. माराथन युद्ध का संदर्भ:

    • माराथन का युद्ध 490 ई.पू. में फारसी सेना और एथेंस के बीच हुआ।
    • एथेंस की छोटी सेना ने विशाल फारसी सेना को हराकर अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
    • दिवेर युद्ध को माराथन युद्ध के समकक्ष बताया गया क्योंकि यह भी एक कमजोर पक्ष की बड़ी विजय थी।

महाराणा प्रताप और छापामार युद्ध प्रणाली

  1. छापामार रणनीति:

    • हल्दीघाटी के बाद महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध प्रणाली अपनाई।
    • दुश्मन की रसद आपूर्ति को काटना, गुप्त आक्रमण करना और पहाड़ी क्षेत्रों का लाभ उठाना उनकी रणनीति का हिस्सा था।
  2. भीलों का योगदान:

    • भील समुदाय ने गुप्तचर, संदेशवाहक, और सैन्य सहायता के रूप में महाराणा का सहयोग किया।
    • उनके समर्थन से शस्त्र, खाद्य सामग्री, और कोष सुरक्षित रखा गया।
  3. स्वभूमिध्वंस नीति:

    • प्रताप ने दुश्मन को परेशान करने के लिए अपनी ही भूमि को नष्ट करने की रणनीति अपनाई।
    • इससे मुगलों के लिए स्थायी नियंत्रण स्थापित करना असंभव हो गया।

चावंड: आपातकालीन राजधानी

  1. चावंड का महत्व:

    • 1585 ई. में महाराणा प्रताप ने चावंड के दुर्गम क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया।
    • यह स्थान सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त था क्योंकि शत्रु के आकस्मिक हमले की संभावना कम थी।
  2. निर्माण कार्य:

    • प्रताप ने चावंड में महल, चामुंडा मंदिर, और अन्य संरचनाओं का निर्माण कराया।

अंतिम दिन और विरासत

  1. चित्तौड़ और मांडलगढ़ को छोड़कर नियंत्रण:

    • महाराणा प्रताप ने अपने अंतिम समय तक मेवाड़ के अधिकांश हिस्सों को मुगलों से मुक्त कर लिया।
    • केवल चित्तौड़ और मांडलगढ़ पर ही मुगलों का अधिकार रह गया।
  2. मृत्यु और अंतिम संस्कार:

    • 19 जनवरी, 1597 को 57 वर्ष की आयु में चावंड में महाराणा प्रताप का निधन हुआ।
    • उनका अंतिम संस्कार बांडोली गाँव के निकट किया गया, जहाँ 8 खंभों की छतरी उनकी याद दिलाती है।
  3. उपाधियाँ:

    • महाराणा प्रताप को "मेवाड़ केसरी" और "हिंदुआ सूरज" कहा जाता है।