प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक
- संग्रामसिंह का प्रसिद्ध नाम: महाराणा सांगा।
- समकालीन शासक:
- दिल्ली: सुल्तान सिकंदर लोदी।
- गुजरात: महमूद बेगड़ा।
- मालवा: नासिर शाह/नासिरुद्दीन खिलजी।
ठाकुर कर्मचंद का योगदान
- शरणदाता:
- महाराणा सांगा के कठिन समय में ठाकुर कर्मचंद ने शरण दी।
- महाराणा रायमल ने पहले ठाकुर कर्मचंद को जागीर दी थी।
- सम्मान और जागीर:
- गद्दी पर बैठने के बाद महाराणा सांगा ने ठाकुर कर्मचंद को अजमेर, परबतसर, मांडल, फूलिया, बनेड़ा आदि की जागीरें दीं (कुल वार्षिक आय 15 लाख)।
- 'रावत' की उपाधि प्रदान की।
सीमा सुरक्षा और सामरिक मित्रता
- उत्तर-पूर्वी मेवाड़:
- ठाकुर कर्मचंद की जागीर ने क्षेत्र को सुरक्षित बनाया।
- दक्षिण और पश्चिमी मेवाड़:
- सिरोही और वागड़ के शासकों से मित्रता।
- ईडर के सिंहासन पर प्रशंसक रायमल को बिठाया।
- दक्षिण-पूर्वी सीमा:
- मेदनीराय को गागरोण और चंदेरी की जागीरें देकर सीमा की सुरक्षा।
- मारवाड़:
- वहां के शासक को भी सहयोगी बनाया।
रावत सारंगदेव का सम्मान
- उपकार और सहयोग:
- महाराणा सांगा के कुँवरपद के दौरान रावत सारंगदेव ने दो बार प्राण बचाए।
- सारंगदेव के वंशज:
- उनके पुत्र रावत जोगा को मेवल परगने के और गांव दिए।
- आदेश दिया कि सारंगदेव के वंशज 'सारंगदेवोत' कहलाएंगे।
महाराणा सांगा की इन नीतियों और रणनीतियों ने मेवाड़ की सीमाओं को सुरक्षित किया और उनके साम्राज्य को स्थिरता प्रदान की।
महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)
चित्तौड़गढ़ दुर्ग और शिलालेख
- 1517 ई. में शिलालेख:
- महाराणा सांगा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में एक शिलालेख खुदवाया।
- कालिका माता मंदिर का जीर्णोद्धार: इस शिलालेख में इसका उल्लेख है।
- 1516 ई. में जैन ग्रंथ 'जयचंद्रचैत्य परिपाटी':
- इसमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग में 32 जैन मंदिरों के होने का उल्लेख है।
गुजरात-मेवाड़ संघर्ष
पृष्ठभूमि:
- महाराणा कुम्भा के समय से प्रारंभ हुए गुजरात-मेवाड़ संघर्ष को महाराणा सांगा ने जारी रखा।
- मुख्य कारण: ईडर का उत्तराधिकार।
ईडर का प्रश्न:
- राव भाण राठौड़:
- उनके पुत्र सूर्यमल और भीमसिंह।
- सूर्यमल की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र रायमल गद्दी पर बैठे।
- भीमसिंह ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की मदद से रायमल को हटाकर खुद को राजा बना लिया।
महाराणा सांगा की मदद:
- रायमल ने मेवाड़ में महाराणा सांगा की शरण ली।
- महाराणा सांगा ने रायमल की सगाई अपनी पुत्री से करवा दी।
- 1515 ई. में:
- सांगा ने भारमल को हटाकर रायमल को ईडर का वास्तविक शासक बनाया।
गुजरात का हस्तक्षेप:
- निजामुल्मुल्क ने रायमल को हटाकर भारमल को फिर गद्दी दिलाई।
- महाराणा सांगा ने निजामुल्मुल्क को हराया और रायमल को फिर से गद्दी पर बैठाया।
- सुल्तान मुजफ्फर ने तीन बार सेना भेजी, पर हर बार असफल रहा।
- 1520 ई. में: महाराणा सांगा ने अहमदनगर के किले को घेर लिया।
महाराणा की विजय:
- बड़नगर की लूट के बाद चित्तौड़ लौटे।
- गुजरात का सुल्तान लज्जित होकर सन्धि के लिए विवश हुआ।
राणा सांगा और मालवा का संबंध
मालवा की स्थिति:
- महमूद खिलजी द्वितीय के समय मालवा कमजोर स्थिति में था।
- मेदनीराय (राजपूत सरदार): मालवा का वास्तविक शासक।
- मुसलमान अमीरों ने गुजरात के सुल्तान की मदद से मेदिनीराय को माण्ड से भगा दिया।
मेदनीराय को समर्थन:
- महाराणा सांगा ने गागरोण और चंदेरी की जागीरें देकर मेदिनीराय को मदद की।
- मेदिनीराय को समर्थन देकर सांगा ने मालवा पर अपना प्रभाव बढ़ाया।
यह संघर्ष और विजय महाराणा सांगा की नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक कौशल को दर्शाती है। उनकी नीतियां मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाने में सहायक रहीं है। !