1. स्थापना और उत्पत्ति
- गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के गुर्जरात्र प्रदेश में हुई।
- यह वंश अपनी उत्पत्ति भगवान राम के अनुज लक्ष्मण से मानता है, जो उनके द्वारपाल (प्रतिहार) थे।
- इसलिए इसे "प्रतिहार वंश" कहा गया।
2. गुर्जर नाम और प्राचीन उल्लेख
- यह वंश गुर्जर जाति से संबंधित था, इसलिए इन्हें "गुर्जर प्रतिहार" कहा गया।
- पहली बार गुर्जर जाति का उल्लेख बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में हुआ।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी भीनमाल को "कू-चे-लो" (गुर्जर) कहा और उसकी राजधानी को "पीलोमोलो" बताया।
3. अरब आक्रमणों से रक्षा
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार के अनुसार, गुर्जर प्रतिहारों ने 6वीं से 12वीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के खिलाफ भारत की रक्षा की।
- इन्हें भारत के "द्वारपाल" की संज्ञा दी गई।
4. शिलालेखों और ऐतिहासिक स्रोतों में उल्लेख
- नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली, और करडाह शिलालेखों में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
- अरबी यात्री अलमसूदी ने इन्हें "अल गुजर" और उनके राजा को "बोहरा" कहा।
5. राजधानी और प्रारंभिक केंद्र
- एच. सी. रे के अनुसार, गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रारंभिक केंद्र माण्डवैपुरा (मण्डौर) था।
- अन्य इतिहासकार इसे उज्जैन (अवन्ति) मानते हैं।
6. मण्डौर के प्रतिहार
- गुर्जर प्रतिहार वंश की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण थी।
- हरिशचंद्र नामक ब्राह्मण की क्षत्राणी पत्नी भद्रा के चार पुत्रों ने मण्डौर पर अधिकार कर इस वंश की स्थापना की।
- भोगभट्ट
- कद्दक
- रज्जिल
- दह
- मण्डौर की वंशावली रज्जिल से शुरू होती है।
7. प्रमुख शासक और उनके कार्य
- नरभट्ट
- ब्राह्मणों और गुरुओं का संरक्षक था।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे "पेल्लोपेल्ली" कहा।
- नागभट्ट प्रथम
- मेड़ता को जीतकर राजधानी बनाया।
- इसे "नाहड़" के नाम से भी जाना जाता है।
- नागभट्ट की रानी जज्जिका देवी से दो पुत्र हुए: भोज और तात।
- तात
- राज्य त्यागकर संन्यास लिया और मंडौर के आश्रम में जीवन बिताया।
- राज्य छोटे भाई भोज को सौंप दिया।
8. शक्ति और प्रशासन
- गुर्जर प्रतिहारों का प्रभाव क्षेत्र वर्तमान राजस्थान, गुजरात, और मध्य भारत तक फैला हुआ था।
- ये धर्म, कला और संस्कृति के संरक्षक थे।
गुर्जर प्रतिहार वंश का विस्तार (मुख्य बिंदु)
1. गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना
- स्थान: राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में।
- उत्पत्ति: लक्ष्मण से, जो राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे, और इसलिए वंश का नाम "प्रतिहार" पड़ा।
- प्रारंभिक शासक: गुर्जर जाति से संबंधित होने के कारण इन्हें "गुर्जर प्रतिहार" कहा गया।
- ऐतिहासिक उल्लेख: बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख हुआ।
2. उल्लेख और आक्रमणों से रक्षा
- रक्षात्मक भूमिका: गुर्जर प्रतिहारों ने 6वीं से 12वीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए अवरोध का काम किया।
- राजधानी और शक्ति: ह्वेनसांग ने भीनमाल को गुर्जर प्रदेश की राजधानी बताया।
- शिलालेख: नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली, और करडाह शिलालेखों में प्रतिहारों को "गुर्जर" कहा गया है।
- अरब यात्रा: अलमसूदी ने इन्हें "अल गुजर" कहा और राजा को "बोहरा" के रूप में पुकारा।
3. मण्डौर के प्रतिहार
- वर्गीकरण: गुर्जर-प्रतिहारों की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- स्थापना: मण्डौर में हरिशचंद्र नामक ब्राह्मण की पत्नी भद्रा के चार पुत्रों ने वंश की नींव रखी:
- भोगभट्ट
- कद्दक
- रज्जिल
- दह
- रज्जिल से मण्डौर की वंशावली शुरू होती है।
4. प्रमुख शासक
- नरभट्ट:
- ब्राह्मणों और गुरुओं का संरक्षणकर्ता, और चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे "पेल्लोपेल्ली" कहा।
- नागभट्ट प्रथम:
- मेड़ता को जीतकर राजधानी बनाई, जिसे "नाहड़" भी कहा जाता है।
- उनकी रानी जज्जिका देवी से दो पुत्र हुए: भोज और तात।
- तात ने संन्यास लिया और भोज ने राज्य संभाला।
5. सिद्धेश्वर महादेव मंदिर और झोट
- शूलुक:
- सिद्धेश्वर महादेव मंदिर (जोधपुर) का निर्माण करवाया और जैसलमेर के शासक देवराज भाटी को हराया।
- झोट:
- वीणा वादन में माहिर था और गंगा नदी में जलसमाधि ले ली।
6. कक्क और बाउक
- कक्क:
- कन्नौज के शासक नागभट्ट द्वितीय का सामंत, जिन्होंने बंगाल के शासक धर्मपाल के खिलाफ सहायता की।
- भाटी वंश की राजकुमारी पद्मनी से विवाह किया।
- बाउक:
- मण्डौर के विष्णु मंदिर में 837 ई. में प्रतिहार वंश की प्रशंसा शिलालेख लगवाया।
7. कक्कुक और सती प्रथा
- कक्कुक:
- घटियाला (जोधपुर) में 861 ई. में शिलालेख लगवाए, जिनमें राजस्थान में पहले सती प्रथा का उल्लेख किया गया।
- राणुका की मृत्यु पर उसकी पत्नी सम्पल देवी ने सती होने का उल्लेख।
8. नागभट्ट प्रथम का शासन
- राजधानी और विजय:
- नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल को जीतकर अपनी राजधानी बनाई और बाद में उज्जैन को भी अपने अधिकार में किया।
- प्रमुख युद्ध:
- नागभट्ट ने सिन्ध और अरब आक्रमणकारियों को अपनी सीमा में घुसने नहीं दिया, जिससे उनकी ख्याति बढ़ी।
- ख्याति:
- ग्वालियर प्रशस्ति में इन्हें "नारायण" और "म्लेच्छों का नाशक" कहा गया।
- उत्तराधिकारी:
- कुक्कुक और देवराज उनके उत्तराधिकारी थे, लेकिन उनका शासन महत्वपूर्ण नहीं रहा।
- रघुवंशी प्रतिहार:
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया, इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहा जाता है।
इस प्रकार, गुर्जर प्रतिहार वंश ने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में शक्तिशाली शासन स्थापित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला और धर्म की रक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
वत्सराज (783-795 ई.)
1. सत्ता का आरंभ
- उत्तराधिकारी: देवराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र वत्सराज ने शासन संभाला।
- प्रमुख युद्ध: वत्सराज ने भण्डी वंश को पराजित किया और बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को हराया।
- संगति: वत्सराज की रानी सुंदरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ, जिन्हें नागवलोक कहा जाता है।
2. सांस्कृतिक योगदान
- काव्य और साहित्य:
- उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना की (778 ई.)।
- जैन आचार्य जिनसेन ने "हरिवंश पुराण" की रचना की।
- मंदिर निर्माण:
- वत्सराज ने औसियां के प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य और जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- औसियां का हरिहर मंदिर पंचतंत्र शैली में बना है, जो एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
- औसियां को राजस्थान का भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसिया माता मंदिर (ओसवाल जैनों की देवी) में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है।
3. त्रिकोणात्मक संघर्ष
- कन्नौज का संघर्ष:
- वत्सराज के समय में कन्नौज (कान्यकुब्ज में आयुध वंश) के लिए पूर्व में बंगाल के पाल, दक्षिण में राष्ट्रकूट और उत्तर-पश्चिम में प्रतिहारों के बीच संघर्ष चला।
- इसे भारतीय इतिहास में 'त्रिकोणात्मक संघर्ष' या 'त्रिपक्षीय संघर्ष' कहा जाता है।
- कन्नौज पर अधिकार:
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार किया।
- इस संघर्ष को वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और 'रणहस्तिन्' की उपाधि मिली।
4. युद्ध और विजय
- मुंगेर युद्ध:
- वत्सराज ने पाल शासक धर्मपाल को मुंगेर के युद्ध में हराया।
- इस युद्ध में मंडौर का कक्क प्रतिहार (बाउक प्रशस्ति) और सांभर का दुर्लभराज चौहान (पृथ्वीराज विजय) भी साथ थे।
- ध्रुव राष्ट्रकूट का आक्रमण:
- समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने वत्सराज पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया।
- इसके बाद ध्रुव ने पाल शासक धर्मपाल को भी हराया।
- यह युद्ध गंगा और यमुना के दोआब में हुआ था, और इस विजय के उपलक्ष्य में ध्रुव ने अपने कुलचिह्न में गंगा और यमुना के चिह्नों को शामिल किया।
- ध्रुव के बाद के घटनाक्रम:
- ध्रुव के निधन के बाद, धर्मपाल ने इन्द्रायुध को हटाकर चक्रायुध को कन्नौज का शासक नियुक्त किया।
5. संक्षेप में
- वत्सराज के शासनकाल को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है, जहां उन्होंने कन्नौज पर विजय प्राप्त की और त्रिकोणात्मक संघर्ष में भाग लिया। उनके समय में सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान के रूप में महत्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण हुआ, और साहित्यिक कार्यों को भी बढ़ावा मिला।
मिहिरभोज प्रथम (836-885 ई.)
1. सत्ता का आरंभ और प्रमुख विजय
- उत्तराधिकारी: मिहिरभोज प्रथम, रामभद्र के पुत्र थे।
- धार्मिक विश्वास: मिहिरभोज वैष्णव धर्म के अनुयायी थे।
- पहला अभिलेख: मिहिरभोज का पहला अभिलेख "वराह अभिलेख" था, जो 836 ई. का है (893 विक्रम संवत्)।
- अरब यात्रा:
- अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की और मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया, जिसने अरबों को रोक दिया।
- कश्मीरी कवि कल्हण की प्रशंसा: कश्मीरी कवि कल्हण ने अपनी "राजतरंगिणी" में मिहिरभोज के प्रशासन की प्रशंसा की है।
2. नैतिक विजय और विस्तार
- राष्ट्रकूटों पर विजय: मिहिरभोज ने राष्ट्रकूट वंश को पराजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया। इस समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- उपाधि और सिक्के:
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज को 'आदिवराह' की उपाधि प्राप्त थी।
- दौलतपुर अभिलेख में उन्हें 'प्रभास' कहा गया।
- मिहिरभोज के समय में प्रचलित चांदी और तांबे के सिक्कों पर 'श्रीमदादिवराह' अंकित था।
3. सिंहासन त्याग और तीर्थयात्रा
- सिंहासन त्याग:
- स्कंधपुराण के अनुसार, मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए अपना राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910 ई.)
1. साहित्यिक योगदान
- गुरु और संगीतकार कवि: महेन्द्रपाल के शासनकाल में कवि राजशेखर ने महत्वपूर्ण रचनाएं कीं, जिनमें कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विधाशालभंजिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास, और भुवनकोश शामिल हैं।
- उपाधि: राजशेखर ने महेन्द्रपाल को 'रघुकुल चूड़ामणि', 'निर्भय नरेश', और 'निर्भय नरेंद्र' कहा।
2. उत्तराधिकारी
- महेन्द्रपाल के दो पुत्र थे: भोज द्वितीय (910-913 ई.) और महिपाल प्रथम।
- भोज द्वितीय ने 910-913 ई. तक शासन किया।